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परिचय।
३५ दिया था। पर तुम्हारी इस सरलताके लिए चित्तमें बहुत सन्तोष हुआ. कि तुम्हारे मनमें भी सीरी वगैरहके सम्बन्धके विचार उत्पन्न हुए। ___ यहाँसे कँवार सुदी १० को रवाना होकर सुदी ११ के सबेरे वहाँ आनेका विचार है। इसके पहले कुछ माल खरीद करना हो तो वह तुम्हारे विचार पर निर्भर है। जितनी सँभाल तुमसे हो सके उतनी तुम करना । और यदि प्रत्यक्ष नुकसान दिखाई पड़ता हो तो फिर किसी बातमें न पड़ना । मुद्दल दाम उठ सकें या साधारण नुकसानकी संभावना हो और इसके लिए तुम्हारा चित्त भय खाता हो कि एक दूसरेके चित्तमें भेद-भाव न पड़ जाय तो तुम उसे स्वीकार कर लेना । परन्तु जहाँ तक हो सके पहले इनकार ही करना और कहना कि राजचंद्र भाई शीघ्र ही आनेवाले हैं, इस लिए उनके आये बिना कुछ खरीदनेका विचार नहीं है । जहाँ तक बन सके ऐसा करनेमें ही लाभ है। इससे आगे चल कर भी लाभ होगा। संबंधके टूट जाने वगैरहकी कल्पनाके भयसे हिस्सेमें शामिल होनेका कोई कारण नहीं है । इतने पर भी इस बातका भार तुम पर इस लिए छोड़ा है कि थोड़ी रकमका मामला हो और काम चलानेके लिए सम्बन्ध रखना उचित जान पड़े तो वैसा करना। ___ मुझे अपने वहाँ न रहनेके कारण पहले हीसे भय था कि वे लोग ऊँचे भावमें रहा करेंगे और व्यापारको बिना कारण ही बेढंगी स्थितिमें लानेके जैसा करेंगे। कारण उन लोगोंका स्वभाव ही ऐसा है और वर्तमानमें हुआ भी यही है।"
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