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श्रीमद् राजचन्द्रकि यह अंश बालबोध-मोक्षमाला'के ऊपरसे लिया गया है और राजचंद्र जब सतरह वर्षके थे तब ही उनकी इच्छा इस 'मोक्षमाला'के 'प्रज्ञा-बोध' और 'विवेचन-बोध' ऐसे दो भागोंके लिखनेकी ओर थी। मोक्षमाला' के उद्धृत किये हुए विचार श्रीमद् राजचंद्रने बाल-बुद्धियों के लिए लिखे हैं। वे ही जब इतने गंभीर हैं तब उन दो भागोंके विचार कितने महत्त्वपूर्ण होते यह कहनेकी कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। किसी भी विषयके लिखनेके पहले उसके लेखकमें उस विषयका ज्ञान इतना अधिक होना चाहिए कि वह स्वयं उस विषयको अच्छी तरह समझता हो और दूसरोंको लिखकर समझा सकता हो । जिसने साधारण लोगोंके लिए ऐसे गंभीर विचार लिखे हैं तब सोचिए कि इन विचारोंके साथ तुलना करनेमें 'प्रज्ञाबोध'
और 'विवेचन-बोध'के विचार कितने गंभीर और ज्ञान-पूर्ण होते; और फिर वे विचार दूसरेको भी समझाये जा सकें इसके लिए उसके लेखकमें कितना ज्ञान होना चाहिए था। इस पर विचार करनेसे पाठकोंको श्रीमद् राजचंद्रके उस समयके ज्ञानका ठीक ठीक पता चल सकेगा।
हमें उनके ज्ञानका ठीक पता चले इसकी अपेक्षा इस बात पर विचार करनेकी आवश्यकता है कि उनकी शक्ति कैसे विकाशको प्राप्त हुई थी। यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में जब इकबीस वर्षकी छोटी छोटी उम्रवाले सिविलियन होते देखे जाते हैं तब श्रीमद् राजचंद्रमें और क्या विशेषता है ? इसका उत्तर यह है कि छोटी उम्रमें विद्याभ्यास करके ज्ञान प्राप्त करना जुदी बात है और बिना अभ्यास किये स्वयं विचार करना जुदी बात है। विद्याभ्यास जब कि अपने पूर्वके विद्वानोंकी कृतिको सरणमें रख कर उस पर ध्यान देना मात्र है तब एक छोटेसे विषय पर अपने
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