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________________ परिचय। इस्लाम, क्रिश्चियन तथा इसी प्रकार पृथ्वीके सब ही धर्म कहते हैं कि हमारा धर्म तुम्हें सब प्रकारकी सिद्धिया प्रदान करेगा। अब कहिए हम किसको सत्य समझें? न तो वादी और प्रतिवादी दोनों सच्चे होते हैं और न दोनों झूठे ही होते हैं । बहुत हुआ तो वादी कुछ अधिक सच्चा होता है और प्रतिवादी कुछ थोड़ा झूठा होता है। यह एक आश्चर्यकी बात है कि दोनोंकी बातें न सर्वथा झूठी होती है, और न सबको सत्य ही कहा जा सकता है। यदि सबको असत्य कहें तो हम स्वयं नास्तिक ठहरते हैं और धर्मकी सत्यता नष्ट होती है। और यह तो निश्चित है कि धर्ममें सत्यता है तथा संसारमें उसकी आवश्यकता भी है। यदि यह कहें कि इन धर्मों में एक ही सच्चा है और सब झूठे हैं तो इस बातको फिर सिद्ध करना चाहिए । इसी प्रकार सभी धर्मोको सत्य कहना भी बालूकी भीत चुननेके बराबर है । कारण ऐसा होता तो फिर इतने मत-भेद ही क्यों होते ? और जो कुछ मत-भेद न हो तो सब धर्मगुरु अपने अपने मतोंके स्थापित करनेके लिए क्यों प्रयत्न करते ? इस प्रकारके परस्पर-विरोधी विचारोंको देख कर थोड़ी देर तक चुप रह जाना पड़ता है। इस विषयमें अपनी बुद्धि के अनुसार में कुछ खुलासा करता हूँ। यह खुलासा सत्य और माध्यस्थ भावनाके वश होकर किया जाता है। इसमें एकान्त या मताग्रह नहीं है, पक्षपात या अविवेक नहीं है। किन्तु यह उत्तम और विचार करने योग्य है। देखनेमें यह सामान्य जान पड़ेगा; परन्तु सूक्ष्म विचारसे इसमें बहुत रहस्य रहेगा। इतना तो तुम्हें स्पष्ट मानना पड़ेगा कि संसारमें चाहे कोई एक धर्म सम्पूर्ण-रूपसे सत्य है। इस पर तुम कहोगे कि तब साथ ही यह भी सिद्ध हो जायगा कि उस धर्मको छोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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