________________
२६
श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत -
सद्गुरुका उत्तर ।
इस पर सद्गुरुने कहा, हाँ, 'आत्मा है, ' और वह इस प्रकार सिद्ध हो सकता है
भास्यो देहाध्यासथी, आत्मा देहसमान । पण ते बन्ने भिन्न छे, प्रगटलक्षणे भान ॥ ४९ ॥ अध्यासाद् भासिता देह - देहिनोः समता, न सा । तयोर्द्वयोः सुभिन्नत्वालक्षणैः प्रकटैरहो ! ॥ ४९ ॥
अर्थात् - अज्ञान के कारण जो अनादि काल से देहका गाढ़ सम्बन्ध हो रहा है उससे तुझे आत्मा देहके जैसा भासमान हो रहा है; परन्तु वास्तवमें आत्मा और देह दोनों ही जुदे जुड़े हैं; क्योंकि दोनोंके लक्षण भिन्न भिन्न दिखाई पड़ते हैं।
भास्यो देहाध्यासथी, आत्मा देहसमान । पण ते बन्ने भिन्न छे, जेम असि ने म्यान ॥ ५० ॥ अध्यासाद् भासिता देह - देहिनोः समता, न सा । तयोर्द्वयोः सुभिन्नत्वादसिकोशायते ध्रुवम् ॥ ५० ॥ अर्थात्-अज्ञानके कारण जो अनादि कालसे देहका गाढ़ सम्बन्ध हो रहा है उससे तुझे देह ही आत्माके जैसा भासमान हो रहा है; परन्तु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org