SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हित-मार्ग त्याग देनेके लिए बाध्य होना पड़ेगा। और फिर इसका परिणाम यह होगा कि अनित्य पदार्थोंमें राग होनेके कारण आत्माको बार बार संसार-परिभ्रमण करते रहना पड़ेगा। ज्ञानियोंने इन छः बातोंको सम्यग्दर्शनका मुख्य निवास स्थान बतलाया है, जिनका ऊपर संक्षेपमें उल्लेख किया गया है । विचार करने पर निकट भव्य प्राणी-तद्भव मोक्षमामी-इनका स्वरूप सहज ही सप्रमाण समझ सकता है-इनका उसे परम निश्चय हो सकता है । इनका सब ओरसे विस्तार-पूर्वक विचार-मनन करके आत्मामें विवेक उत्पन्न करना चाहिए । परम पुरुषोंने यह कहा है कि ये छः बातें अत्यन्त सन्देह-रहित हैं। इनका स्वरूप आत्माको · अपने स्वरूपका ज्ञान करानेके लिए कहा है। ज्ञानी पुरुषोंने इनका उपदेश जीवके उस अहंभाव-ममत्व-भाव-के दूर करनेके लिए किया है जो अनादि स्वप्न-दशाके कारण उसमें उत्पन्न हो रहा है । यदि जीवके ऐसे परिणाम हों कि इस स्वप्न-दशासे रहित मेरा खरूप है तो सहज ही वह जाग्रत होकर सम्यग्दर्शन लाभ कर सकता है। और फिर इसी सम्यग्दर्शनके द्वारा स्व-स्वभाव-रूप मोक्षको प्राप्त हो सकता है । फिर उसे विनाशीक, अशुद्ध तथा इसी प्रकारके अन्य भावोंमें हर्ष, शोक, संयोग आदि उत्पन्न नहीं होते। विचार करने पर उसे अपने ही स्वरूपमें शुद्धता, पूर्णता, अविनश्वरता, अत्यन्त आनन्दअयता और अंतरहितता आदि स्वाभाविक गुणोंका अनुभव होने लगता की उसे स्पष्ट--प्रत्यक्ष-अत्यन्त प्रत्यक्ष-अनुभव होता है कि सब मभाव-पर्यायोंमें जो एकता हो रही है वह मेरे ही अध्यास-परिणाम--- ल हुई है, वास्तवमें तो मैं उनसे सर्वथा भिन्न हूँ । विनाशीक तथा अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy