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आत्मसिद्धि ।
प्राप्तिके कारण हैं, इस लिए तुम इन गुणोंको-क्रियाओंको-प्राप्त करो; परन्तु देखो, केवल इन्हींमें न लग जाओ । कारण आत्म-ज्ञान के बिना ये भी संसारके कारणोंको नष्ट नहीं कर सकेंगे । इस लिए आत्म-ज्ञानकी प्राप्तिके निमित्त तुम इन वैराग्य आदि गुणोंको धारण करो । और केवल कायक्लेशमें, जिसमें कि कषायें क्षीण नहीं की जा सकें, मोक्षका दुराग्रह न करो - समझो कि आत्म-ज्ञानके बिना केवल कायक्लेश कदापि मोक्षका कारण नहीं हो सकता । यह क्रिया - जड़ों के लिए उपदेश है ।
और जो शुष्क- ज्ञानी त्याग - वैराग्य आदिसे रहित हैं, मात्र वचनों द्वारा कहने के लिए ज्ञानी हैं उनके लिए यह कहना है कि वैराग्य आदि साधन आत्म-ज्ञानकी प्राप्तिके कारण हैं; क्योंकि कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति नहीं होती। जरा सोचो कि जब तुमने वैराग्य आदि ही प्राप्त नहीं कर पाया तब तुम आत्म-ज्ञान कहाँसे प्राप्त कर सकते हो ? संसारके प्रति उदासीनता, देहादिकमें मूर्च्छा - ममत्व का कम होना, भोगोंमें आसक्तिका न होना तथा मान आदिका अत्यन्त मंदपना होना आदि गुणोंके बिना आत्म-ज्ञानका कुछ परिणाम नहीं होता । और आत्म-ज्ञान होनेपर ये ही गुण अत्यन्त दृढ़ हो जाते हैं; क्योंकि इन गुणोंके धारणा करनेवालेको आत्म-ज्ञान-रूप मूल प्राप्त हो जाता है । और इसके विपरीत आत्म-ज्ञान न होने परभी तुम यह मानते हो कि हमें आत्म-ज्ञान है; किन्तु तुम्हारे आत्मामें तो विषय-भोगादिककी लालसा-रूपी आग जलती रहती है, पूजा - सत्कारादिककी बार-बार इच्छा जाग्रत होती रहती है; और जरा ही असाता का उदय आने पर विपत्ति के समय बहुत ही घबराहट पैदा हो जाती है । उस समय यह क्यों ध्यानमें नहीं आता कि ये आत्म-ज्ञान के
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