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________________ परिचय । १०९ ईश्वरका अंश मान लेनेसे उसे पुरुषार्थ करनेकी आवश्यकता न रह जायगी; क्योंकि फिर वह कर्ता-हर्ता तो ठहर नहीं सकता । इत्यादि विरोधोंके कारण मेरी बुद्धि इस बातको कबूल नहीं करती कि कोई भी जीव ईश्वरका अंश है; तब फिर वह श्रीकृष्ण तथा राम जैसे महात्माओंको इस रूपमें मान लेनेके लिए कैसे तयार हो सकती है ? यद्यपि इस बातके मान लेने में कोई बाधा नहीं आती कि ये दोनों ही महात्मा 'अव्यक्त ईश्वर' थे; तो भी यह बात विचारणीय है कि उनमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य प्रकट हो गया था क्या ? (२) तुम्हारे इस प्रश्नका उत्तर सहज है कि 'इन्हें माननेसे मोक्षप्राप्ति तो हो सकेगी?' देखो, सब प्रकार राग-द्वेष, अज्ञान आदिके नष्ट हो मानेको मोक्ष कहते हैं । वह जिनके उपदेशसे हो सके उन्हें माननेसे और वैसे ही परमार्थ-स्वरूपका विचार करनेसे, अपने आत्मामें उसी प्रकारकी निष्ठा होकर उन्हीं महात्माओंके आत्माके स्वरूपके जैसी जब स्थिति हो जाय तब मोक्ष-प्राप्ति संभव ही है। इसके सिवाय अन्य उपासना सर्वथा मोक्षकी कारण नहीं है। उसके साधनकी कारण है। और यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह साधनका कारण निश्चयसे होगी ही। २६ वाँ प्रश्न-ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर ये कौन हैं ? उत्तर--सृष्टिके कारण-रूप तीन गुणोंका आधार लेकर रूपक बाँधा हो तो यह कल्पना ठीक बैठ सकती है तथा ऐसे ही अन्य और कारणों द्वारा इन ब्रह्मादिकोंका स्वरूप समझमें आ सकता है। परन्तु इस बातके मानने में मेरा मन गवाही नहीं देता कि पुराणोंमें जैसा उनका स्वरूप कहा गया है वैसा ही उनका स्वरूप है । क्योंकि यह भी जान पड़ता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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