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श्रीमद् राजचन्द्र
उत्तर-भक्ति ज्ञानका कारण है और ज्ञान मोक्षका कारण है। जिसे अक्षर ज्ञान न हो उसे बे-पढ़ा-लिखा कहा जाय तो ऐसा नहीं है कि उसके लिए भक्तिका प्राप्त होना असंभव है; क्योंकि जीव मात्र ज्ञान स्वभावके धारक हैं । भक्तिके द्वारा ज्ञान निर्मल होता है और निर्मल ज्ञान मोक्षका कारण है । परन्तु मेरा ऐसा विश्वास है कि बिना सम्पूर्ण ज्ञान हुए मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सकती; और यह कहनेकी भी आवश्यकता नहीं कि जहाँ सम्पूर्ण ज्ञान होता है वहाँ सब भाषा-ज्ञान गर्भित हो जाता है । भाषा-ज्ञान मोक्षका कारण है। परन्तु यह कोई नियम नहीं है कि जिसे भाषा-ज्ञान न हो उसे आत्मज्ञान भी न हो।
२५ वाँ प्रश्न-क्या यह बात सत्य है कि कृष्ण और राम अवतार हैं ? और यदि ऐसा है तो अवतारसे मतलब क्या है ? ये साक्षात् ईश्वर थे या उसके अंश थे ? इन्हें माननेसे मोक्ष-प्राप्ति तो हो सकेगी ?
उत्तर-(१) यह तो मुझे निश्चय है कि ये दोनों ही महात्मा थे। वे आत्मा थे अतएव ईश्वर भी थे; और उनके सर्व आवरण नष्ट हो गये हों तो उन्हें मोक्ष-प्राप्ति मानने भी कोई विवाद नहीं है । परन्तु मैं इस बातको स्वीकार नहीं कर सकता कि कोई जीव ईश्वरका अंश है। क्योंकि उसके विरोधी हजारों ही प्रमाण दृष्टिमें आते हैं। जीवको ईश्वरका अंश मानलेनेसे बंध, मोक्ष आदि सब व्यर्थ हो जायँगे; कारण फिर तो अज्ञानादि भावोंका कर्ता ईश्वर ही ठहरेगा। इस प्रकार यदि ईश्वर अज्ञानादि भावोंका कर्ता ठहर गया तब तो उसमें जो स्वाभाविक ईश्वरत्व था कहना चाहिए कि वह उसे भी खो बैठा । अर्थात् चला तो वह जीयोंका खामी बनने और खो बैठा अपने ईश्वरत्वको ही! इसी प्रकार जीवको
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