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परिचय।
सहन कर दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रहकी लड़ाई लड़ी है। महात्मा गाँधीके सम्बन्धके उन पत्रोंको-जिन्हें श्रीमद् राजचन्द्रने गाँधीजी पर लिखा थापढ़नेके लिए साग्रह निवेदन है। वे पत्र ये हैं
"आत्म-हितैषी, गुणग्राही और सत्संग-योग्य श्रीयुत भाई..
जीवनमुक्ता-दशाकी इच्छा करनेवाले राजचंद्रका आत्म-स्मृति-पूर्वक यथायोग्य । यहाँ कुशल है । तुम्हारा पत्र मुझे मिला । कुछ कारणोंसे उसके उत्तर देने में विलम्ब हो गया । इसके बाद जान पड़ा कि तुम शीघ्र ही इधर आनेवाले हो, इस कारण फिर मुझे पत्र देनेकी कोई विशेष आवश्यकता भी न जान पड़ी। परन्तु हालहीमें ज्ञात हुआ कि ऐसे कई कारण उपस्थित हैं जिनसे लगभग एक वर्ष तक अभी
ओर तुम्हें उधर ठहरना होगा। इस लिए अब मुझे पत्र लिखना आवश्यक जान पड़ा और इसी कारण मैंने यह पत्र लिखा है । तुम्हारे पत्रमें जो आत्मा आदिके सम्बन्धके प्रश्न किये गये हैं और उनके जाननेकी जो तुम्हारे मनमें विशेष उत्कंठा है इन दोनों बातोंके प्रति मेरा स्वाभाविक अनुमोदन है । परन्तु जिस समय तुम्हारा पत्र मुझे मिला था उस समय मेरे चित्तकी ऐसी स्थिति नहीं थी कि मैं उसका उत्तर दे सकूँ । और बहुत करके इसका कारण यह था कि उस समय परिणामोंमें बाह्य उपाधिके प्रति अधिक वैराग्य हो गया था। इस कारण यह शक्य न था कि उस पत्रके उत्तर देनेकी ओर मेरी प्रवृत्ति होती । विचारा था कि थोड़े समयबाद इस वैराग्यसे कुछ अवकाश ग्रहण कर तुम्हारे पत्रका उत्तर लिखूगा। परन्तु फिर यह भी अशक्य हो गया । और वह यहाँ तक कि तुम्हारे
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