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श्रीमदू राजचन्द्रऔर फिर स्वयं ही उनका उत्तर दिया है। विचार करनेसे जान पड़ेगा कि जब तीन प्रश्नोंका उत्तर उन्होंने 'हाँ'के रूपमें दिया तब चौथे प्रश्नका उत्तर न 'हाँ'के रूपमें दिया है और न 'ना'के रूपमें; किन्तु वह गुप्त रूपमें है। पहला प्रश्न किया गया है कि "वैसा काल है ?" इसका आशय यह जान पड़ता है कि इस प्रश्नके द्वारा उन्होंने यह बात पूछी है कि "परानुग्रह" और "जिनके जैसी अटल-अचल दशा"के लिए यह 'काल' योग्य है? इसका उत्तर उन्होंने दिया है कि "इस विषयमें विकल्पोंको छोड़"। इससे उनका आशय यह जान पड़ता है कि इसके लिए वर्तमान काल निर्विकल्प है-यह काल इस विषयका बाधक नहीं है। दूसरा प्रश्न किया है कि "वैसा क्षेत्र-योग है?" इसका यह अभिप्राय जान पड़ता है कि इच्छित स्थिति के लिए क्षेत्र अनुकूल है या नहीं । इसका उन्होंने उत्तर दिया है कि "ढूँढ"। इससे सहज ही कहा जा सकता है कि उन्हें वर्तमान क्षेत्र प्रतिकूल नहीं जान पड़ा था। तीसरा प्रश्न किया है "वैसा पराक्रम है ?" इस प्रश्नसे उनका मतलब यह जान पड़ता है कि ऐसी स्थितिके प्राप्त करने योग्य अपने में शक्ति है या नहीं। इसका उत्तर उन्होंने दिया है "अप्रमत्त शूरवीर बन ।" उनके इस उत्तरसे यह सूचित होता है कि प्रमत्त भावोंके दूर करने-रूप शूरवीरता प्राप्त करे तो तुझमें 'पराक्रम भी मौजूद है। दो प्रश्नों के उत्तरकी भाँति इस तीसरे प्रश्नका उत्तर भी उन्होंने 'हाँ' कह कर दिया है । चौथा प्रश्न उन्होंने किया है "इतना आयुर्बल है ?” इस प्रश्नसे उनका मतलब यह जान पड़ता है कि वे मनमें विचार करते हैं कि अपनी वांछित स्थिति प्राप्त करनेके जितना मुझमें आयुर्बल है या नहीं। इस प्रश्नका उन्होंने उत्तर दिया
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