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________________ प्रकाशकीय वक्तव्य विचार स्थिर किया गया। पं० पन्नालालजी 'वसन्त' अपना वह अनुवाद बहुत वर्ष पहले ही भेज चुके थे जो इस प्रन्थ के साथ प्रकाशित हो रहा है। कितने ही वर्षतो यह समन्तभद्रभारतीके अन्य ग्रन्थोंके अनुवाद. की प्रतीक्षामें पड़ा रहा और जब विद्वानोंके सहयोगाभाव तथा प्रेस और कागजकी कुछ परिस्थितियोंके वश समन्तभद्रभारतीका अभी उस रूपमें प्रकाशित करना अशक्य जान पड़ा जिसरूपमें उसके प्रकाशनकी सूचना उक्त विज्ञप्तिमें की गई थी तब समन्तभद्रभारतीके ग्रन्थोंको प्रारम्भमें अलग-अलग प्रकाशित करनेका ही निश्चय करना पड़ा । तदनुसार सबसे पहले 'स्वयम्भूस्तोत्र' को प्रेसमें दिया गया। यह ग्रन्थ अर्सेसे प्रेसमें ही छपा हुआ रक्खा है । इसकी अभीष्ट प्रस्तावना लिखनेका मुझे अभी तक अवसर नहीं मिल सका, इसीसे प्रकाशमें नहीं लाया जा सका। अब इस ग्रन्थके बाद जल्दी ही प्रकाशमें पाएगा और उसके अनन्तर 'युक्त्यनुशासन' तथा 'समीचीन धर्मशास्त्र' नामसे रत्नकरण्डक भी अपने भाष्यसहित प्रकाशमें लाया जाएगा। पिछले ग्रन्थकी ४-५ कारिकाओंके भाष्यका नमूना अनेकान्तमें प्रकाशित हो चुका है , और इससे अनेक सज्जन उस भाष्यको देखने के लिये भी बहुत ही उत्कंठित हैं। प्रेस तथा कागज आदिकी कुछ परिस्थितियोंके वश प्रस्तुत ग्रन्थ अभी तक प्रेसमें नहीं दिया जासका था और इसके कारण अनुवादकजीको कितनी ही प्रतीक्षा करनी पड़ी, जिसका मुझे खेद है । साथ ही उनका यह धैर्य प्रशंसनीय है और इसके लिये मेरे हृदय में स्थान है। अपने इस अनुवादके लिये वे समाजके धन्यवाद-पात्र हैं। इस ग्रन्थका एक संस्करण आजसे कोई ३८ वर्ष पहले सन् १९१२ में स्वर्गीय पं० पन्नालालजी बाकलीवालने पं० लालारामजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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