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स्तुतिविद्या
टीकाकारने कविका नाम, विना किसी विवाद अथवा अपने पूर्वकथनादि के साथ विरोधके, 'शान्तिवर्मा' सूचित किया है उसे समंतभद्रका ही नामान्तर समझना चाहिये । परन्तु यह नाम उनके मुनिजीवनका नहीं हो सकता; क्योंकि मुनियोंके 'वर्मान्त' नाम प्रायः देखने में नहीं आते । जान पड़ता है यह श्राचार्य महोदय के मातापितादि द्वारा दिया हुआ उनके जन्मका शुभ नाम था । इस नामसे आपके क्षत्रिय वंशोद्भव होनेका पता चलता है । यह नाम राजघरानोंका-सा है । कदम्ब, गंग और पल्लव आदि वंशों में कितने ही राजा वर्मान्त नामको लिये हुए हैं । कदम्बों में तो 'शान्तिवर्मा' नामका भी एक राजा हुआ है। समन्तभद्र राजपुत्र थे और उनके पिता फरिणमण्डलान्तर्गत 'उरगपुर " के राजा थे, यह बात आपकी दूसरी 'आप्तमीमांसा' नामक कृतिकी एक प्राचीन ताडपत्रीय प्रतिके निम्न पुष्पिकावाक्यसे जानी जाती है, जो श्रवणबेलगोल के श्री दौर्बलिजिनदास शास्त्रीके शास्त्र भण्डार में सुरक्षित हैं
" इति श्री फणिमंडलालंकारस्योरगपुराधिपसूनोः श्रीस्वामिसमन्तभद्रमुनेः कृतौ श्राप्तमीमांसायाम् ।"
हाँ, इस शान्तिवर्मा नामपर से यह कहा जा सकता है कि समनंतभद्रने अपने मुनि जीवनसे पहले इस ग्रन्थकी रचना की होगी; परन्तु ग्रन्थ के साहित्यपर से इसका कुछ भी समर्थन नहीं होता । आचार्य महोदयने, इस ग्रन्थ में, अपनी
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१ यह उरगपुर 'उरैयूर' का ही संस्कृत अथवा श्रुतिमधुर नाम जान पड़ता है, जो चोल राजाओं की सबसे प्राचीन ऐतिहासिक राजधानी थी, पुरानी त्रिचिनापोली भी इसीको कहते हैं । यह नगर कावेरीके तट पर बसा हुआ था. बन्दरगाह था और किसी समय बड़ा ही समृद्धिशाल जनपद था ।
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