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________________ प्रस्तावना का आरोप किया गया है ? यह प्रश्न बड़ा ही सुन्दर है और सभीके लिये इसका उत्तर वांछनीय एवं जानने के योग्य है । अतः अब इसीके समाधानका यहाँ प्रयत्न किया जाता है। सबसे पहली बात इस विषयमें यह जान लेनेकी है कि इच्छापूर्वक अथवा बुद्धिपूर्वक किसी कामको करनेवाला ही उसका कर्ता नहीं होता बल्कि अनिच्छापूर्वक अथवा अवुद्धिपूर्वक कार्यका करनेवाला भी कर्ता होता है। वह भी कार्यका कर्ता होता है जिसमें इच्छा या बुद्धिका प्रयोग ही नहीं बल्कि सद्भाव (अस्तित्व) भी नहीं अथवा किसी समय उसका संभव भी नहीं है। ऐसे इच्छाशून्य तथा बुद्धिविहीनकर्ता कार्योंके प्रायः निमित्तकारण ही होते हैं और प्रत्यक्षरूपमें तथा अप्रत्यक्षरूपमें उनके कर्ता जड़ और चेतन दोनों ही प्रकारके पदार्थ हुआ करते हैं। इस विषयके कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किये जाते हैं, उनपर जरा ध्यान दीजिये (१) 'यह दवाई अमुक रोगको हरनेवाली हैं। यहाँ दवाई. में कोई इच्छा नहीं और न बुद्धि है, फिर भी वह रोगको हरनेवाली है-रोगहरण कार्यकी को कही जाती है। क्योंकि उसके निमित्तसे रोग दूर होता है। ... (२) 'इस रसायनके प्रसादसे मुझे नीरोगताकी प्राप्ति हुई। यहाँ रसायन' जड़ औषधियोंका समूह होनेसे एक जड़ पदार्थ है; उसमें न इच्छा है, न बुद्धि और न कोई प्रसन्नता; फिर भी एक रोगी प्रसन्नचित्तसे उस रसायनका सेवन करके उसके निमित्तसे आरोग्य-लाम करता है और उस रसायनमें प्रसन्नता. का आरोप करता हुआ उक्त वाक्य कहता है। यह सब लोक. व्यवहार है अथवा अलंकारकी भाषामें कहनेका एक प्रकार है। इसी तरह यह भी कहा जाता है कि 'मुझे इस रसायन या दवाईने अच्छा कर दिया जब कि उसने बुद्धिपूर्वक या इच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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