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स्तुतिविका
त है-बेरोकटोक प्रचलित है जिस तरह कि समस्त आका. समें व्याप्त होने वाले बादलोंमें जल रहता है। हे प्रभो! आप जारी तथा अन्य जीवोंकी रक्षा कीजिये ।। ५५॥
(अनुलोमप्रतिलोमश्लोकः) रक्ष माक्षर वामेश शमी चारुरुचानुतः ।
मो विभोनशनाजोरुनमन विजरामय ॥८६॥ रक्षमेति-क्रमपाठेनैकश्लोकः विपरीतपाठेनाप्यपरश्लोकः । अर्थव
रक्ष पालय । मा अस्मदः इबन्तस्य रूपम् । अक्षर अनश्वर । वामेश प्रधानस्वामिन् । शमी उपशान्तः स्वमिति सम्बन्धः । चारुरुचानुत: शोभनभक्तिना पुरुषेण प्रणुतः । भो विभो हे त्रैलोक्यगुरो । अनशन अनाहार अविनाश इति वा । अज परमात्मन उरवः महान्त: नम्राः नमनशीला: बिस्यासावुरुननः तस्य सम्बोधनं हे उरुनन्न । इन स्वामिन् । विजरामय विगतवृद्धवन्याधे । किमुक्त भवति-हे पर अक्षर वामेश शमी त्वं रुरुचानुतः भो विभो अनशन अज उरुनन्न इन विजरामय मा
॥८६॥ । अर्थ-हे त्रिलोकपते ! अरनाथ ! श्राप विनाश-रहित हैं, इन्द्रोंके भी इन्द्र हैं, शान्तरूप हैं, बड़े-बड़े भक्त पुरुष आपकी स्तुति करते हैं, आप आहाररहित हैं, अज हैं, बड़े-बड़े पुरुष आपको नमस्कार करते हैं, आप सबके स्वामी हैं और बुढ़ापा तथा व्याधियोंसे रहित हैं अतः आप मेरी रक्षा कीजिये ।। ८६ ।।
(अनुलोमप्रतिलोमश्लोकः ') यमराज विनम्रन रुजोनाशन भो विभो ।
तनु चारुरुचामीश शमेवारक्ष माक्षर ॥८७॥ : -नम्बरके श्लोकको विपरीतक्रमसे पढ़ने पर यह श्लोक बन
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