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स्तुतिविद्या
अर्थ- हे भगवन् ! भाप अनन्तज्ञान-दर्शन-सुख-वीयरूप अन्तविभूति तथा अष्ट प्रातिहार्यरूप बहिरङ्ग विभूविसे विभूषित साथमें निरम्बर भी हैं-वस्त्रशून्य हैं अर्थात् इतने निर्धन हैं कि आपके पास एक वस्त्र भी नहीं है । अतः आपको सुशोभित कहने|कुछ आश्वयंसा मालूम होता है; परन्तु यह निश्चित है कि पाप जिस प्रसिद्ध सिंहासनपर आरूढ-विराजमानहोते हैं वह अत्यन्त सुशोभित होने लगता है-सिंहासनकी शोभा आपके विराजमान होनेसे बढ़ती है अत: आपके सुशोभित होनेमें कोई आश्चर्य नहीं है। . | भावार्थ-'वह आदमी इतना निर्धन है कि उसके पास पहिननेको एक कपड़ा भी नहीं है। इन शब्दोंसे लोकमें निर्धनताकी सीमाका वर्णन किया जाता है। भगवान् शान्तिनाथके शरीर पर भी एक कपड़ा नहीं था इसलिये लौकिक दृष्टिसे उन्हें सम्पन्न कैसे कहा जावे ? परन्तु वे अनन्तचतुष्टयरूप सच्ची सम्पदा तथा प्रातिहार्यरूप देवरचित विभूतिसे विभूषित थे अतः उनको असम्पन्न भी कैसे कहा जावे ? इन दोनों विरुद्ध मातोंके रहते हुए भगवान् शान्तिनाथको सम्पन्न अथवा
सम्पन्नका निर्णय देनेमें आचार्यको पहले कुछ अड़चनका सामना करना पड़ता है; परन्तु जब उनकी दृष्टि सिंहासनपर पड़ती है और वे सोचते हैं कि यह सिंहासन सुवर्ण-निर्मित तथा इलजड़ित होनेपर भी जब भगवान्से रहित होता है तब इसकी सूर्यरहित उदयाचलकी तरह प्रायः कुछ भी शोभा नहीं होती। और सिंहासन जब भगवानसे अधिष्ठित होता है तब इसकी शोभा ठीक उसी तरह बढ़ जाती है जिस तरह कि शिखरपर अरुण दिनकर-बालसूर्यके प्रारूद होनेपर उदयाचलकी बढ़
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