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________________ स्तुतिविद्या ___सर्प-नेवला, मूषक-मार्जार, गो-व्याघ्र आदि ऐसे जानवर हैं जिनका जन्मसे ही परस्पर वैर होता है वे आपसमें कभी नहीं मिलते । यदि कदाचित् मिलते भी हैं तो उनमें जो निर्बल होता है वह सबल के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है । परन्तु जिनेन्द्र देवका यह अतिशय होता है कि उनके पास रहनेवाले जन्तु परस्परका वैर भूल जाते हैं-वास्तवमें उनका शरीर इतना सौम्य शान्तिमय और आकर्षक होजाता है कि उनके पास विचरने वाले प्राणी आपसके वैरको छोड़कर परस्परमें प्रेम और प्रीतिसे विह्वल होजाते हैं इसलिये आचार्यने ठीक ही लिखा है कि आपके सामने परस्परके विरोधी जीव भी मिल जाते हैं।' एक वर्षमें वसन्त ग्रीष्म वर्षा शरद् हेमन्त और शिशर ये छह ऋतुएँ होती हैं। इनका समय क्रमसे चैत्र वैशाख, ज्येष्ठ आषाढ, श्रावण भाद्रपद, आश्विन कार्तिक, मार्गशोर्ष पौष, और माघ फाल्गुन, इसतरह दो-दो मासका निश्चित है। वर्ष में मास परिवर्तन क्रमशः होता है अतः ऋतुओंका परिवर्तन भी क्रमशः होता है । एक साथ न मिलनेके कारण ऋतुओंमें परस्पर विरोध कहलाता है; परन्तु जिनेन्द्रदेव जहां विराजमान होते हैं वहां छहों ऋतुए एक साथ प्रकट हो जाती हैं-छहों ऋतुओं की शोभा दृष्टिगत होने लगती है। इसलिये आचार्यने जो कह 'य एव नित्यक्षणिकादयो नया मिथोनपेक्षाः स्वपरप्रणाशिनः । त एव तत्वं विमलस्य ते मुनेः परस्परेक्षाः स्वपरोपकारिणः ॥' .. -स्वयंभूस्तोत्र, समन्तभद्राचार्यः । सारङ्गो सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतं मार्जारो हंसबालं प्रणयपरवशा केकिकान्ता भुजकोम् । पैराण्या न्मजातान्यपि गलितमदा जन्तवोऽन्ये त्यजन्ति श्रित्वा साम्यैकरून प्रशमितकुलु पोगिक पीयमोहम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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