SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इनकी गणितविषयक विद्वत्ता का निदर्शन यही है कि उन्होंने गणितपाद में वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल एवं व्यवहार श्रेणियों के गणित का सुन्दर विवेचन किया है । अंगविज्जा -- अंगविद्या भारतवर्ष में प्राचीनकाल से प्रसिद्ध रही है । प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राचीन अंगविद्या के नियम संकलित हैं । अष्ट प्रकार के निमित्तज्ञान में अंगनिमित्त को प्रधान और महत्त्वपूर्ण बताया है । आचार्य ने लिखा है - अर्थात् जिस प्रकार समस्त नदियाँ समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार स्वर, लक्षण, व्यंजन, स्वप्न, छिन्न, भौम और अन्तरिक्षनिमित्त अंगनिमित्तरूपी समुद्र में मिल जाते हैं । इस ग्रन्थ के अध्ययन से जय-पराजय, लाभ-हानि, जीवन-मरण आदि की सम्यक् जानकारी प्राप्त की जा सकती है । बताया है- जधा नदीओ सव्वाओ भवरंति महोदधिं । एवं अंगोदधिं सव्वे निमित्ता ओतरंति हि ॥ १ । ६ पृ. १ अणुरत्तो जयं पराजयं वा राजमरणं वा आरोग्गं वा रण्णो आतंकं वा उवदवं वामा पुण सहसा वियागरिज्ज णाणी । कामाऽलामं सुहदुक्खं जीवितं मरणं वा सुभिक्खं दुब्मिक्खं वा अणावुट्ठि सुबुद्धिं वा धणहाणि अज्झप्पवित्तं वा कालपरिमाणं अंगहियं तत्तत्थणिच्छियमई सहसा उ ण वागरिज्ज णाणी । पृ. ७ यह ग्रन्थ साठ अध्यायों में समाप्त किया गया है । इसकी ग्रन्थसंख्या नौ हजार श्लोक प्रमाण है । गद्य और पद्य दोनों का प्रयोग किया गया है । यह फलादेश का विशालकाय ग्रन्थ है । इसमें हलन चलन, रहन-सहन, चर्याचेष्टा प्रभृति मनुष्य की सहज प्रवृत्ति से निरीक्षण द्वारा फलादेश का निरूपण किया गया है । यह प्रश्नशास्त्र का ग्रन्थ है और प्रश्नकर्ता की विभिन्न प्रवृत्तियों के आधार पर फलादेश का कथन करता है । अतएव गम्भीर अध्ययन के अभाव में वास्तविक फलादेश का निरूपण नहीं किया जा सकता है | ग्रन्थकर्ता ने अंगों के आकार-प्रकार, वर्ण, संख्या, तोल, लिंग, स्वभाव आदि की दृष्टि से उनको २७० विभागों में विभक्त किया है, विविध चेष्टाएँ, पर्यस्तिका, आमर्श, अपश्रय-आलम्बन, खड़े रहना, देखना, हँसना, प्रश्न करना, नमस्कार करना, संलाप, आगमन, रुदन, परिवेदन, क्रन्दन, पतन, अभ्युत्थान, निर्गमन, जंभाई लेना, चुम्बन, आलिंगन प्रभृति नाना चेष्टाओं का निरूपण कर फलादेश का प्रतिपादन किया गया है । इस ग्रन्थ के नवम अध्याय में २७० विषयों का निरूपण किया है । प्रथम द्वार में शरीर-सम्बन्धी ७५ अंगों के नाम और उनका फलादेश वर्णित है । यथा - एताणि आमसं पुच्छे अत्थकामं जयं तथा । पराजयं वा सत्तणं मित्तसंपत्तिमेव य ॥ ९ । ८ पृ. ६० समागमं घरावासं थाणमिस्सरियं जसं । fogत्तिं वा पतिट्ठ वा मोगलामं सुहाणि य ॥ ९ । ९ पृ. ३० प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only ७७ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy