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________________ आर्यभट्ट प्रथम – ज्योतिष का क्रमबद्ध इतिहास आर्यभट्ट के समय से मिलता है । इनका जन्म ई. सन् ४७६ में हुआ था, इन्होंने ज्योतिष का प्रसिद्ध ग्रन्थ 'आर्यभटीय' लिखा है । इसमें सूर्य और तारों के स्थिर होने तथा पृथ्वी के घूमने के कारण दिन और रात होने का वर्णन है । पृथ्वी की परिधि ४९६७ योजन बतायी गयी है । आर्यभट्ट ने सूर्य और चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारणों की व्याख्या की है । बालक्रियापाद में युग के समान २ भाग करके पूर्व भाग का उत्सर्पिणी और उत्तर भाग का अवसर्पिणी नाम बताया है तथा प्रत्येक के सुषमासुषमा, सुषमा आदि छह-छह भेद बताये हैं कालक्रियापाद में क्षेपक विधि से ग्रहों के 'स्पष्टीकरण की विधि विस्तार से बतलायी है तथा बुध, शुक्र को विलक्षण संस्कार से संस्कृत कर स्पष्ट किया है । गोलपाद में मेरु की स्थिति का सुन्दर वर्णन किया है तथा अक्षक्षेत्रों के अनुपात द्वारा लम्बज्या, अक्षज्या का साधन सुगमता से किया है । उत्सर्पिणी युगाद्धं पश्चादवसर्पिणी युगार्द्धं च । मध्ये युगस्य सुषमादावन्ते दुःषमाग्न्यंशात् ॥ आर्यभट्ट ने १, २, ३ आदि अंक संख्या के द्योतक क, ख, ग आदि वर्ण कल्पना किये हैं अर्थात् अ, आ इत्यादि स्वर वर्ण और क, ख, ग आदि व्यंजन वर्णों का १-१ संख्या वाचक अर्थ देकर बड़ी-बड़ी संख्याओं को प्रकाशित किया है । गीतिकापाद में कहा है क = १, ख = २, ञ = १०, ट = ११, द = १८, ध = १९, च = ६, छ = ७, ज = ८, झ = ९, ग = ३, घ = ४, ङ = ५, ठ= १२, ड = १३, न = २०, प = २१, ढ = १४, ण १५, फ = २२, ब = = २३, त = १६, थ = १७, भ = २४, म = २५; य = ३०, र = ४०, ल = ५०, व = ६०, श = ७०, ष = ८०, स = ९०, ह = १०० । क = १, कि = १००, कु = १००००, कृ = १००००००, क्ऌ = १००००००००, के = १००००००००००, कै = १००००००००००००, को = १००००००००००००००, कौ = १००००००००००००००००, ख = २, खि २००, खु = २००००, खू = २०००००० ख्ल २००००००००, खे = २००००००००००, खै - २००००००००००००, = २००००००००००००००, खौ = २००००००००००००००००, इसी प्रकार आगे की अंक संख्याएँ दी गयी हैं । खो वर्गाक्षराणि वर्गेऽवर्गेऽवर्गाक्षराणि कात् ङमौ यः । खद्विनवके स्वरा नववर्गेऽवर्गे नवान्त्यवर्गे वा ॥ ७६ Jain Education International कुछ पाश्चात्त्य विद्वान् आर्यभट्ट की इस अंक संख्या पर से अनुमान करते हैं कि उन्होंने यह संख्याक्रम ग्रीकों से लिया है । चाहे जो हो, पर इतना निश्चित है कि आर्यभट्ट ने पटना में, जिसका प्राचीन नाम कुसुमपुर था, अपने अपूर्वं ग्रन्थ की रचना की है । भारतीय ज्योतिष - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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