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एक समय मैत्रेय जी ने महर्षि पराशर के समीप उपस्थित होकर साष्टांग प्रणाम करके हाथ जोड़कर पूछा
मगवन् ! परमं पुण्यं गुह्यं वेदाङ्गमुत्तमम् । त्रिस्कन्धं ज्यौतिषं होरा गणितं संहितेति च ॥ एतेष्वपि त्रिषु श्रेष्ठा होरेति श्रूयते मुने ।
त्वत्तस्तां श्रोतुमिच्छामि कृपया वद मे प्रमो ॥ हे भगवन् ! वेदांगों में श्रेष्ठ ज्योतिषशास्त्र के होरा, गणित और संहिता इस प्रकार तीन स्कन्ध हैं। उनमें भी सबसे होराशास्त्र ही श्रेष्ठ है, वह मैं आपसे सुनना चाहता हूँ । कृपा कर मुझे बतला दिया जाये।
पराशर का समय कौन-सा है तथा इन्होंने अपने जन्म से किस स्थान को पवित्र किया था, यह अभी तक अज्ञात है। पर इनकी रचना 'बृहत्पाराशरहोरा' के अध्ययन से इतना स्पष्ट है कि इनका समय 'वराहमिहिर' से कुछ पूर्व है। वराहमिहिर ने बृहज्जातक में ग्रहों के उच्चनीचस्थान, मूलत्रिकोण, नैसर्गिकमित्रता प्रभृति विषय बृहत्पाराशरहोरा से ग्रहण किये प्रतीत होते हैं, भाषा-शैलो और विषय निरूपण वराहमिहिर से पूर्ववर्ती प्रतीत होता है । सृष्टितत्त्व का निरूपण सूर्य सिद्धान्त के समान है। पौराणिक साहित्य में भी सृष्टि का निरूपण इसी प्रकार उपलब्ध होता है । मनुस्मृति और सूर्य सिद्धान्त के सृष्टिक्रम की अपेक्षा भिन्न है। बताया है
एकोऽव्यक्तात्मको विष्णुरनादिः प्रभुरीश्वरः । शुद्धसत्वो जगत्स्वामी निगुणस्त्रिगुणान्वितः ॥ संस्कारकारकः श्रीमान्निमित्तारमा प्रतापवान् । एकांशेन जगत्सवं सृजस्यवति लीलया ॥
--सृष्टिक्रम, श्लो. १२-१३ स्पष्ट है कि उक्त कथन पौराणिक है अतः बृहत्पाराशरहोरा का समय ७-८वीं शती होना चाहिए।
कौटिल्य में पराशर का नाम आता है। पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये पराशर 'बृहत्पाराशरहोराशास्त्र' के रचयिता से भिन्न हैं या वही हैं। पराशर की एक स्मृति भी उपलब्ध है। गरुडपुराण में पराशर स्मृति के ३९ श्लोकों को संक्षिप्त रूप में अपनाया है, इससे इस स्मृति की प्राचीनता सिद्ध है। कौटिल्य ने पराशर और पराशरमतों की छह बार चर्चा की है। पराशर का नाम प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है। तैत्तिरीयारण्यक एवं बृहदारण्यक में क्रम से व्यास पाराशर्य एवं पाराशर्य नाम आये हैं। निरुक्त ने 'पाराशर' के मूल पर लिखा है। पाणिनि ने भी भिक्षुसूत्र नामक ग्रन्थ को पाराशर्य माना है। पराशर स्मृति की भूमिका में आया है कि ऋषि लोगों ने व्यास के पास जाकर उनसे प्रार्थना की कि वे कलियुग के मानवों के लिए आचारसम्बन्धी धर्म की बातें लिखें। व्यास जी उन्हें बदरिकाश्रम में शक्तिपुत्र अपने पिता पराशर के
प्रथमाध्याय
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