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पास ले गये और पराशर ने उन्हें वर्णधर्म के विषय में बताया। पराशर स्मृति में अन्य १९ स्मृतियों के नाम आये हैं। पराशर स्मृति में कुछ नयी और मौलिक बातें भी पायो जाती हैं । पराशर ने मनु, उशना, बृहस्पति आदि का उल्लेख किया है । इस स्मृति में विनायक स्तुति भी पायी जाती है। पाराशर संहिता का मिताक्षरा, विश्वरूप या अपरार्क ने उद्धरण नहीं दिया है, किन्तु चतुर्विंशतिमत के भाष्य में भट्टोजिदीक्षित तथा दत्तकमीमांसा में नन्दपण्डित ने इससे उद्धरण लिये हैं। अतएव स्पष्ट है कि बृहत्पाराशरहोरा के रचयिता यदि स्मृतिकार पराशर ही हैं, तो इनका समय ईसवी पूर्व होना चाहिए। हमारा अनुमान है कि बृहत्पाराशरहोरा के रचयिता पराशर ईसवी सन् की ५-६वीं शती के हैं। ग्रन्थ की भाषा और शैली के साथ विषय-विवेचन भी वराहमिहिर से पूर्ववर्ती है। अतः ग्रन्थ का रचनाकाल ई. सन् ५वीं शती और रचनास्थल पश्चिम भारत है।
बृहत्पाराशरहोरा ९७ अध्यायों में है। उपसंहाराध्याय में समस्त विषयों की सूची दे दी गयी है। इसमें ग्रहगुणस्वरूप, राशिस्वरूप, विशेषलग्न, षोडशवर्ग, राशिदृष्टि कथन, अरिष्टाध्याय, अरिष्टभंग, भावविवेचन, द्वादशभावों का पृथक्-पृथक् फलनिर्देश, अप्रकाश ग्रहफल, ग्रहस्फुट-दृष्टिकथन, कारक, कारकांशफल, विविधयोग, रवियोग, राजयोग, दारिद्रययोग, आयुर्दाय, मारकयोग, दशाफल, विशेष नक्षत्र दशाफल, कालचक्र, सूर्यादि ग्रहों की अन्तर्दशाओं का फल, अष्टकवर्ग, त्रिकोणशोधन, पिण्डसाधन, रश्मिफल, नष्टजातक, स्त्रीजातक, अंगलक्षणफल, ग्रहशान्ति, अशुभजन्म-निरूपण, अनिष्टयोगशान्ति आदि विषय वर्णित हैं । संहिता और जातक दोनों ही प्रकार के विषय इस ग्रन्थ में आये हैं । यह ग्रन्थ फलित की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। ग्रन्थ के अन्त में बताया है
इत्थं पराशरेणोक्तं होराशास्त्रचमस्कृतम् । नवं नवजनप्रीत्यै विविधाध्यायसंयुतम् ॥ श्रेष्ठं जगद्धितायेदं मैत्रेयाय द्विजन्मने । सतः प्रचरितं पृथ्व्यामादृतं सादरं जनैः ॥
-उपसंहाराध्याय, श्लो. ८-९ इस प्रकार प्राचीन होरा ग्रन्थों से विलक्षण अनेक अध्यायों से युक्त अति श्रेष्ठ इस नवीन होराशास्त्र को संसार के हित के लिए महर्षि पराशर ने मैत्रेय को बतलाया। पश्चात् समस्त जगत् में इसका प्रचार हुआ और सभी ने इसका आदर किया। उडुदाय प्रदीप ( लघुपाराशरी ) का प्रणयन पराशर मुनिकृत होरा ग्रन्थ का अवलोकन कर ही किया गया है।
ऋषिपुत्र-यह जैन धर्मानुयायी ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान् थे । इनके वंशादि का सम्यक् परिचय नहीं मिलता है, पर Catalogus Gatalagorum के अनुसार यह आचार्य गर्ग के पुत्र थे। गर्ग मुनि ज्योतिष के धुरन्धर विद्वान् थे, इसमें कोई सन्देह नहीं । इनके सम्बन्ध में लिखा मिलता है
भारतीय ज्योतिष
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