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वसिष्ठ सिद्धान्त-पितामह सिद्धान्त की अपेक्षा यह संशोधित और परिवद्धित रूप में है । इसमें सिर्फ़ १२ श्लोक है, सूर्य और चन्द्र के सिवा अन्य ग्रहों का गणित इसमें भी नहीं है । ब्रह्मगुप्त के कथन से ज्ञात होता है कि पंचसिद्धान्तिका में संग्रहीत वसिष्ठ सिद्धान्त के कर्ता कोई विष्णुचन्द्र नाम के व्यक्ति थे। डॉ. थीबो साहब ने बतलाया है कि विष्णुचन्द्र इसके निर्माता नहीं, बल्कि संशोधक हैं। श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने ब्रह्मगुप्त के समय में ही दो प्रकार का वासिष्ठ बतलाया है, एक मूल, दूसरा विष्णुचन्द्र का । वर्तमान में लघुवसिष्ठ सिद्धान्त नामक ग्रन्थ मिलता है जिसमें ९४ श्लोक हैं। इसका गणित पंचसिद्धान्तिका के वसिष्ठ सिद्धान्त की अपेक्षा परिमार्जित और विकसित है।
। रोमक सिद्धान्त---इसके व्याख्याता लाटदेव हैं। इसकी रचना-शैली से मालूम पड़ता है कि यह किसी ग्रीक सिद्धान्त के आधार पर लिखा गया है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि अलकजेण्ड्रिया के प्रसिद्ध ज्योतिषी टालमी के सिद्धान्तों के आधार पर संस्कृत में रोमक सिद्धान्त लिखा गया है, इसका प्रमाण वे यवनपुर के मध्याह्नकालीन सिद्ध किये गये अहर्गण को रखते हैं । ब्रह्मगुप्त, लाट, वसिष्ठ, विजयनन्दी और आर्यभट्ट के ग्रन्थों के आधार पर कुछ अन्य विद्वान् इसे श्रीषेण द्वारा लिखा गया बतलाते हैं । डॉ. थीबो साहब श्रीषेण को मूल ग्रन्थ का रचयिता नहीं मानते हैं, बल्कि उसका उसे वह संशोधक बतलाते हैं । इसका गणित पूर्व के दो सिद्धान्तों की अपेक्षा अधिक विकसित है । इसमें सैद्धान्तिक विषयों का निम्न वर्णन गणित-सहित किया है
१५३.२६७८९
महायुगान्त (४३२०००० वर्षों का ), युगान्त (२८५० वर्षों का)। नक्षत्र भ्रम १५८२१८५६००
१०४३८०३.. रवि भ्रम ४३२००००
२८५० सावन दिवस १५७७८६५६४०
१०४०९५३ चन्द्र भगण ५७७५१५७८१६
३८१०० चन्द्रोच्च भगण ४८८२५६७१३
३२२३१३१ चन्द्रपात भगण २३२१६५१६६१६५
१५२१११ सौर मास ५१८४००००
३४२०० अधिमास
१५९१५७८५६ चन्द्रमास ५३४३१५७८१३
३५२५० तिथि १६०२९४७३६६
१०५७५०० तिथिक्षय २५०८१७६८६६
१६५४७ ब्रह्मगुप्त ने इस सिद्धान्त की खूब खिल्ली उड़ायी है। वास्तव में इसका गणित अत्यन्त स्थूल है । कुछ विद्वानों ने इसका रचनाकाल ई. १००-२०० के मध्य में माना है । इसके विषय को देखने से उपर्युक्त रचनाकाल युक्तियुक्त भी जंचता है ।
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मारतीय ज्योतिष
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