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________________ ज्योतिषशास्त्र के २७ योगों का समर्थन होता है। वास्तविक योग शब्द के अर्थ में व्यवहृत योग सर्वप्रथम अथर्व ज्योतिष में ही मिलता है। याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रायश्चित्त अध्याय में "ग्रहसयोगः फलैः" इत्यादि वाक्यों द्वारा ग्रहों के संयोगजन्य फलों का भी कथन किया गया है। इस स्मृति में अमुक नक्षत्र में अमुक कार्य विधेय है इसका कथन बहुत अच्छी तरह से किया है। ___ महाभारत में ज्योतिषशास्त्र की अनेक बातों का वर्णन मिलता है। इसमें युगपद्धति मनुस्मृति-जैसी ही है। सतयुगादि के नाम, उनमें विधेय कृत्य कई जगह आये हैं। कल्पकाल का निरूपण शान्तिपर्व के १८३वें अध्याय में विस्तार से किया गया है। पंचवर्षात्मक युग का भी कथन उपलब्ध होता है। संवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर एवं इद्वत्सर इन ५ युगसम्बन्धी ५ वर्षों में क्रमशः पाण्डव उत्पन्न हुए थे अनुसंवरसरं जाता अपि ते कुलसत्तमाः । पाण्डुपुत्रा ध्यराजन्त पञ्चसंवत्सरा इव ॥ -आ. प., अ. १२४-२४ पाण्डवों को वनवास जाने के बाद कितना समय हुआ, इसके सम्बन्ध में भीष्म दुर्योधन से कहते हैं तेषां कालातिरेकेण ज्योतिषां च न्यतिक्रमात् । पञ्चमे पञ्च मे वर्षे द्वौ मासावुपजायतः॥ एषामभ्यधिका मासाः पञ्च च द्वादश क्षपाः । प्रयोदशानां वर्षानामिति मे वर्तते मतिः ॥ -बि. प., अ. ५६. ३.४ पाँच वर्ष में दो अधिमास यह वेदांग-ज्योतिष पद्धति है और अधिमास आदि की कल्पना भी वेदांग-ज्योतिष के अनुसार ही महाभारत में है। महाभारत के अनुशासन पर्व के ६४वें अध्याय में समस्त नक्षत्रों की सूची देकर बतलाया गया है कि किस नक्षत्र में दान देने से किस प्रकार का पुण्य होता है । महाभारतकाल में प्रत्येक मुहूर्त का नामकरण भी व्यवहृत होता था तथा प्रत्येक मुहूर्त का सम्बन्ध भिन्न-भिन्न धार्मिक कार्यों से शुभाशुभ के रूप में माना जाता था। २७ नक्षत्रों के देवताओं के स्वभावानुसार विधेय नक्षत्र से भावी शुभ एवं अशुभ का निर्णय किया गया है। शुभ नक्षत्रों में ही विवाह, युद्ध एवं यात्रा करने की पद्धति थी। युधिष्ठिर के जन्म-समय का वर्णन करते हुए बताया गया है कि ऐन्द्र चन्द्रसमारोहे मुहूत्तैऽभिजिदष्टमे । दिवो मध्यगते सूर्ये तिथौ पूर्णेति पूजिते ॥ अर्थात्-आश्विन सुदी पंचमी के दोपहर को अष्टम अभिजित् मुहूर्त में सोमवार के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म हुआ। महाभारत में कुछ ग्रह अधिक अनिष्टकारक बताये गये हैं, भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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