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________________ क्रमशः मन्द होती हुई गजगति को प्राप्त हो जाती है। इस कारण उत्तरायण के आरम्भ में बारह मुहूर्त-२४ घटी का दिन होता है, किन्तु उत्तरायण की समाप्ति पर्यन्त गति के मन्द हो जाने से १८ मुहर्त--३६ घटी का दिन होने लगता है और रात १२ मुहूर्त की-९ घण्टा २६ मिनिट की होने लगती है। इसी प्रकार दक्षिणायन के प्रारम्भ में सूर्य जम्बूद्वीप के भीतरी मार्ग से बाहर की ओर-लवणसमुद्र की ओर मन्द गति से चलता हुआ शीघ्र गति को प्राप्त होता है जिससे दक्षिणायन के आरम्भ में १८ मुहूर्त१४ घण्टा २४ मिनिट का दिन और १२ मुहूर्त की रात होती है, परन्तु दक्षिणायन के अन्त में शीघ्र गति होने के कारण सूर्य अपने रास्ते को शीघ्र तय करता है जिससे १२ मुहूर्त का दिन और १८ मुहूर्त की रात होती है। मध्य में दिनमान लाने के लिए अनुपात से १८-१२ = ६ मु. अं., कटे = मु. की प्रतिदिन के दिनमान उत्तरायण में वृद्धि और दक्षिणायन में हानि होती है। यह दिनमान में सब जगह एक नहीं होगा, क्योंकि हमारा निवासरूपी पृथ्वी, जो कि जम्बूद्वीप का एक भाग है, समतल नहीं है । यद्यपि जैन मान्यता में जम्बूद्वीप को समतल माना गया है, लेकिन सूर्यप्रज्ञप्ति में बताया है कि पृथ्वी के बीच में हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरिणी इन छह पर्वतों के आ जाने से यह कहीं ऊँची और कहीं नीची हो गयी है। अतः ऊँचाई, नीचाई अर्थात् अक्षांश, देशान्तर के कारण दिनमान में अन्तर पड़ जाता है । __इस ग्रन्थ में पंचवर्षात्मक युग के अयनों के नक्षत्र, तिथि और मास का वर्णन निम्न प्रकार मिलता है पढमा बहुलपडिवए विइया बहुलस्स तेरिसीदिवसे । सुद्धस्स या दसमीये बहुलस्स य सत्तमीए उ ॥ सुद्धस्स चउत्थीए पवत्तये पंचमीउ भावुद्दा । एया आवुट्टीओ सवाओ सावणे मासे ॥ बहुलस्स सत्तमीए पडमा सुद्धस्स तो चउत्थीए । बहुलस्स य पडिवए बहुलस्स य तेरसीदिवसे ॥ सुद्धस्स य दसमीए पवत्तए पंचमीउ आउट्टी। एता आउद्योओ सव्वाभो माह मासंमि ॥ -सू. प्र., पृ. २२२ अर्थात्-युग का पहला दक्षिणायन श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को अभिजित् नक्षत्र में, दूसरा उत्तरायण माघ कृष्णा सप्तमी को हस्त नक्षत्र में, तीसरा दक्षिणायन श्रावण कृष्णा त्रयोदशी को मृगशिर नक्षत्र में, चौथा उत्तरायण माघ शुक्ला चतुर्थी को शतभिषा नक्षत्र में, पाँचवाँ दक्षिणायन श्रावण शुक्ला दशमी को विशाखा नक्षत्र में, छठा उत्तरायण माघ कृष्णा प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र में, सातवाँ दक्षिणायन श्रावण कृष्णा सप्तमी को रेवती नक्षत्र में, आठवाँ उत्तरायण माघ कृष्णा त्रयोदशी को मूल नक्षत्र में, नौवाँ दक्षिणायन मारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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