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________________ श्रावण शुक्ला नवमी को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में और दसर्वां उत्तरायण माघ कृष्णा त्रयोदशी को कृत्तिका नक्षत्र में होता है । ___ इस ग्रन्थ में सूर्य-परिवार और भ्रमण-वृत्तों के सम्बन्ध में सुन्दर विवेचन किया गया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति का विषय प्रायः सूर्यप्रज्ञप्ति से मिलता-जुलता है। फिर भी इतना तो मानना पड़ेगा कि इसका विषय सूर्यप्रज्ञप्ति की अपेक्षा परिष्कृत है। इसमें सूर्य की प्रतिदिन की योजनात्मिका गति निकाली है तथा उत्तरायण और दक्षिणायन की वीथियों का अलग-अलग विस्तार निकालकर सूर्य और चन्द्रमा की गति निश्चित की है । इसके चतुर्थ प्राभूत में चन्द्र और सूर्य का संस्थान तथा तापक्षेत्र का संस्थान विस्तार से बताया है । ग्रन्थकर्ता ने समचतुरस्र, विषमचतुरस्र आदि विभिन्न आकारों का खण्डन कर सोलह वीथियों में चन्द्रमा का समचतुरस्र गोल आकार बताया है। इसका कारण यह है कि सुषमासुषमा काल के आदि में श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन जम्बूद्वीप का प्रथम सूर्य पूर्व-दक्षिण-अग्निकोण में और द्वितीय सूर्य पश्चिमोत्तर-वायव्यकोण में चला। इसी प्रकार प्रथम चन्द्रमा पूर्वोत्तर-ईशानकोण में और द्वितीय चन्द्रमा पश्चिम-दक्षिणनैऋत्यकोण में चला। अतएव युगादि में सूर्य और चन्द्रमा का समचतुरस्र संस्थान था, पर उदय होते समय ये ग्रह वर्तुलाकार से निकले, अतः चन्द्र और सूर्य का आकार अर्धक पीठ-अर्धसमचतुरस्र गोल बताया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति में छाया साधन किया है, तथा छाया प्रमाण पर के दिनमान का भी प्रमाण निकाला है, ज्योतिष की दृष्टि से यह विषय महत्त्वपूर्ण है। २५ वस्तुओं की छाया बतायी गयी है, इनमें एक कीलकच्छाया या कीलच्छाया का भी उल्लेख आया है। मालूम पड़ता है कि यह कीलच्छाया ही आगे जाकर शंकुच्छाया के रूप में परिवर्तित हो गयी है। कीली का मध्यम मान द्वादश अंगुल माना है, जो आजकल के शंकुमान के बराबर है। कीलच्छाया का कथन सिर्फ संकेतमात्र है, विस्तृत रूप से इसके सम्बन्ध में कुछ विचार नहीं किया है। पुरुषच्छाया पर से दिनमान की साधनिका की गयी है ___ ता अवड्ड पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गए वा सेसे वा ता ति मागे गए वा ता सेसे वा पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गए वा सेसे वा जाव चउभाग गए वा सेसे वा, ता दिवड्त पोरिसिणं छाया दिघसस्स किं गए वा सेसे वा, वा पंचमाग गए वा सेसे वा एवं अवड्त पोरिसिणं छाया पुच्छा दिवसस्स भागं छोटुवा गरणं जाव वा अंगुलहि पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गए वा सेसे वा ता एकूण वीसस भागे वा सेसे वा सातिरेग-अंगुणसहि पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गए वा सेसे वा ताणं किं गए किंचि विगए वा सेसे वा। -चं. प्र. ९.५। प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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