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________________ ज्योतिश्चक्रे तु लोकस्य सर्वस्योकं शुभाशुभम् । ज्योतिर्ज्ञानं तु यो वेद स याति परमां गतिम् ॥ अर्थात्-ज्योतिश्चक्र सम्पूर्ण लोक के शुभाशुभ को व्यक्त करनेवाला है, अतः जो ज्योतिषशास्त्र का ज्ञाता है वह परम कल्याण को प्राप्त होता है। ___ई. १००-३०० तक के काल में इस शास्त्र की उन्नति विशेष रूप से हुई । कृत्तिकादि नक्षत्र-गणना में राशियों का क्रम निर्धारण नहीं किया जा सकता था, इसलिए अश्विनी आदि नक्षत्र-गणना प्रचलित हुई। तथा सम्पात तारा रेवती स्वीकृत हो गयी थी। इस काल में ज्योतिष के प्रवर्तक निम्न १८ आचार्य हुए, जिन्होंने अपने दिव्यज्ञान द्वारा ज्योतिष के सिद्धान्तग्रन्थों का निर्माण किया । सूर्यः पितामहो व्यासो वसिष्ठोऽनिः पराशरः । कश्यपो नारदो गर्गों मरीचिमनुरङ्गिराः ॥ लोमशः पौलिशश्चैव ध्यवनो यवनो भृगुः । शौनकोऽष्टादशाश्चैते ज्योतिशास्त्रप्रवर्तकाः ॥ -काश्यप विश्वसृड्नारदो व्यासो वसिष्ठोऽत्रिः पराशरः । लोमशो यवनः सूर्यश्च्यवनः कश्यपो भृगुः ॥ पुलस्त्यो मनुराचार्यः पौलिशः शौनकोऽङ्गिराः। गर्गों मरीचिरित्येते ज्ञेया ज्योतिःप्रवर्तकाः ॥ -पराशर अर्थात्-सूर्य, पितामह, व्यास, वसिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक ये १८ ज्योतिषशास्त्र के प्रवर्तक बतलाये गये हैं। पराशर ने इन १८ आचार्यों के साथ पुलस्त्य नाम के एक आचार्य को और माना है, अतः इनके मत से १९ आचार्य ज्योतिषशास्त्र के प्रवर्तक हैं । नारद ने सूर्य को छोड़ शेष १७ को ही इस शास्त्र का प्रवर्तक बतलाया है। इनमें से कुछ आचार्य संहिता और सिद्धान्त इन दोनों के रचयिता हैं और कुछ सिर्फ एक विषय के। इनके निश्चित समय का पता लगाना कठिन है। श्री सुधाकर द्विवेदी ने वराहमिहिर विरचित पंचसिद्धान्तिका को प्रकाशिका नामक टीका के प्रारम्भ में सूर्यारुण संवाद के कई श्लोक उद्धृत किये हैं तथा उनके सम्बन्ध में बतलाया है ___ “आदि वेदांग रूप ज्ञान पितामह-ब्रह्मा को प्राप्त हुआ, उन्होंने अपने पुत्र वसिष्ठ को दिया। विष्णु ने उस ज्ञान को सूर्य को दिया, वही सूर्यसिद्धान्त नाम से विख्यात हुआ। उस सिद्धान्त को मैं ( सूर्य ) ने मय को दिया वही वसिष्ठ सिद्धान्त है। पुलिश ने निज निर्मित सिद्धान्त को गर्ग आदि मुनियों को बतलाया। मैंने ( सूर्य ने ) शापग्रस्त होकर यवन जाति में जन्म पाकर रोमक को रोमकसिद्धान्त बतलाया। रोमक ने अपने नगर में उसका प्रचार किया।" प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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