SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संतातिर्वा एते ग्रहाः । यत्परः समानः । विषुवान् दिवाकीत्य | यथा शालायै पक्षसी । एव संवत्सरस्य पक्षसी ॥ - तै. बा. १. २. ३ अर्थात् संवत्सररूपी पक्षी का विषुवान् सिर है और उससे आगे-पीछे आनेवाले छह-छह महीने उसके पंख हैं । जैन आगम ग्रन्थों में भी विषुवान् के सम्बन्ध में संक्षिप्त चर्चा मिलती है । ऋग्वेद के मन्त्र में प्रार्थना की गयी है कि जिस प्रकार सूर्य दिन की वृद्धि करता है, उसी प्रकार हे अश्विन्, आयु वृद्धि करिए । दिनवृद्धि और दिनमान की चर्चा गोपथ और शतपथ ब्राह्मणों में बीज रूप से मिलती है । उदयकाल के अन्तिम भाग की रचना समवायांग में दिन-रात की व्यवस्था पर अच्छा ऊहापोह है बाहिराओ उत्तराओणं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमाणे चोयालीस इमे मंडलगते अट्ठासीति एगसट्टिभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेन्ता रयणिखेत्तस्स अमिनिवुड्ढेत्ता सूरिए चारं चरइ, दक्खिण कट्ठाओणं सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे चोयाकीसविमे मंडलगते अट्ठासीह एगसट्टिमागे मुहुत्तस्सं स्यणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुट्ठित्ताणं सूरिए चारं चरइ । - स. ८८. ४ अर्थात् — सूर्य जब दक्षिणायन में निषध पर्वत के अभ्यन्तर मण्डल से निकलता हुआ ४४वें मण्डल – गमनमार्ग में आता है उस समय दृटे मु. दिन कम होकर रात बढ़ती है— इस समय २४ घटी का दिन और ३६ घटी की रात होती है । उत्तर दिशा में ४४वें मण्डल—गमनमार्ग पर जब सूर्य आता है तब टेटे मु. दिन बढ़ने लगता है और इस प्रकार जब सूर्य ९३ वें मण्डल पर पहुँचता है तो दिन परमाधिक अर्थात् ३६ घटी का होता है । यह स्थिति आषाढ़ी पूर्णिमा को घटती है । सूयगडांग में भी दिन-रात की व्यवस्था के सम्बन्ध में संक्षिप्त उल्लेख मिलता है, जो लगभग उपर्युक्त व्यवस्था से मिलता-जुलता है । इस प्रकार उदयकाल में ज्योतिष के सिद्धान्त अन्य विषयों के साथ लिपिबद्ध किये गये थे । आदिकाल (ई. पू. ५०० - ई. ५०० तक ) का सामान्य परिचय उदयकाल में जहाँ वेद, ब्राह्मण और आरण्यकों में फुटकर रूप से ज्योतिषचर्चा पायी जाती है, आदिकाल में इस विषय के ऊपर स्वतन्त्र ग्रन्थ रचना की जाने लगी थी । इस युग में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छन्द ये छह भेद वेदांग के प्रकट हो गये थे । अभिव्यंजना की प्रणाली विकसित होकर ज्ञानभाण्डार का विभिन्न विषयों में वर्गीकरण करने की क्षमता रखने लग गयी थी । इस युग का भारतीय ज्योतिष ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy