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कज्जोवग, कर्वट, अयस्कर, दुन्दुमक, शंख, शंखवर्ण, इन्द्राग्नि, धूमकेतु, हरि, पिंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, राहु, अगस्ति, भानवक्र, काश, स्पर्श, धुर, प्रमुख, विसन्धि, नियल, पयिल, जटिलक, अरुण, अगिल, काल, महाकाल, स्वस्तिक, सौवस्तिक, वर्द्धमान, पुष्यमानक, अंकुश, प्रलम्ब, नित्यलोक, नित्योदयित, स्वयंप्रभ, उसम, श्रेयंकर, क्षेमंकर, आभंकर, प्रभंकर, अपराजित, अरज, अशोक, विगतशोक, विमल, विमुख, वितत, वित्रस्त, विशाल, शाल, सुव्रत, अनिवर्तक, एकजटी, द्विजटी, करकरीक, राजगल, पुष्पकेतु एवं भावकेतु आदि ८८ ग्रहों के नाम बताये हैं।'
समवायांग में भी उपर्युक्त ८८ ग्रहों का समर्थन मिलता हैएगमेगस्सणं चंदिम सूरियस्स अट्ठासीइ अट्ठासीइ महग्गहा परिवारो प० ।
-स. ८८." अर्थात्-एक चन्द्र और सूर्य का परिवार ८८ महाग्रहों का है।
प्रश्नव्याकरणांग में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु या धूमकेतु इन नौ ग्रहों के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है। अतएव उदयकाल के अन्त में ग्रहों का विचार शास्त्रीय दृष्टि से होने लग गया था। राशिविचार
यद्यपि ऋग्वेद में राशिविचार स्पष्ट रूप में नहीं मिलता है, पर उसके निम्न मन्त्र द्वारा राशियों की कल्पना की जा सकती है
द्वादशारं नहि तज्जराय वर्वर्ति चक्रं परिघामृतस्य । आपुत्रा आग्ने मिथुनासो अत्र सप्त सतानि विंशतिश्च तस्थुः ॥
-ऋ. १, १६४, ११ अर्थात्-इस मन्त्र में 'द्वादशार' शब्द से द्वादश राशियों का ग्रहण किया गया है। वैसे तो ऋग्वेद में और भी दो-एक जगह चक्र शब्द आया है, जो राशि चक्र का बोधक ही प्रतीत होता है। द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत ।
-*. १. १६४. ४९ स्पष्ट आगम प्रमाण के अभाव में भी युक्ति द्वारा इतना तो मानना ही पड़ेगा कि आकाश मण्डल का राशि एक स्थूल अवयव और नक्षत्र सूक्ष्म अवयव है। जब भारतीयों ने सौर जगत् के सूक्ष्म अवयव नक्षत्रों का इतनी गम्भीरता के साथ ऊहापोह किया था, तब क्या वे स्थूलावयव राशि के बारे में कुछ भी विचार नहीं करते होंगे ? साधारणतः बुद्धि द्वारा इस प्रश्न का उत्तर यही मिलेगा कि प्रचीन भारतीयों ने जहाँ सूक्ष्म अवयव नक्षत्रों को साहित्यिक मूर्तिमान रूप प्रदान किया है, वहाँ स्थूल अवयव राशियों को भी अवश्य साहित्य का मूर्तिमान् रूप प्रदान किया होगा। एक दूसरी बात १. देखें, ठा. पृ. ९८-१०० ।
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