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ता कहते कुला उवकुला कुनावकुला अहितोति वदेजा ?
तस्थ खलु इमा बारस कुला बारस उवकुला चत्तारि कुलावकुला पगणता ॥ बारस कुला तं जहा-धणिहाकुलं उत्तराभवयाकुलं, अस्तिणीकुलं, कत्तियाकुलं, मिगसिरकुलं, पुस्सोकुलं महाकुलं, उत्तराफरगुणीकुलं, चित्ताकुलं, विसाहाकुलं, मूलोकुलं, उत्तराषाढाकुलं । बारस उवकुला पण्णत्ता तं जहा-सवणो उपकुलं, पुवमद्दवया उवकुलं, रेवतिउवकुलं, मरणिउवकुलं, रोहिणीउवकुलं, पुणावसुउवकुलं, असलेसाउवकुलं, पुवफग्गुणीउवकुलं, हत्थे उवकुलं, साति उवकुलं, जेट्टाउवकुलं, पुश्वासाढाउवकुलं ॥ चत्तारि कुलावकुलं पण्णत्ता तं जहा-अभिजिति कुलावकुलं, सतमिसया कुलावकुलं, अद्दाकुलावकुलं, अणुराहा कुलावकुलं ।।
-प्र. व्या. १०.५ अर्थात्-बारह नक्षत्र कुल, बारह उपकुल और चार नक्षत्र कुलोपकुलसंज्ञक हैं । धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल एवं उत्तराषाढा ये नक्षत्र कुलसंज्ञक; श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा एवं पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र उपकुलसंज्ञक और अभिजित्, शतभिषा, आर्द्रा एवं अनुराधा कुलोपकुलसंज्ञक हैं । यह कुलोपकुल का विभाजन पूर्णमासी को होनेवाले नक्षत्रों के आधार पर किया गया है। सारांश यह है कि श्रावण मास के धनिष्ठा, श्रवण और अभिजित्; भाद्रपद मास के उत्तराभाद्रपद, पूर्वाभाद्रपद और शतभिष; क्वार या आश्विन मास के अश्विनी और रेवती; कार्तिक मास के कृत्तिका और भरणी; अगहन या मार्गशीर्ष मास के मृगशिर और रोहिणी; पौषमास के पुष्य, पुनर्वसु और आर्द्रा; माघ मास के मघा और आश्लेषा; फाल्गुन मास के उत्तराफाल्गुनी और पूर्वाफाल्गुनी; चैत्र मास के चित्रा और हस्त; वैशाख मास के विशाखा और स्वाति; ज्येष्ठ मास के मूल, ज्येष्ठा और अनुराधा एवं आषाढ़ मास के उत्तराषाढ़ा और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र बताये गये हैं। प्रत्येक मास की पूर्णमासी को उस मास का प्रथम नक्षत्र कुलसंज्ञक, दूसरा उपकुलसंज्ञक और तीसरा कुलोपकुलसंज्ञक होता है। अर्थात् श्रावण मास की पूर्णिमा को धनिष्ठा पड़े तो कुल, श्रवण हो तो उपकुल और अभिजित् हो तो कुलोपकुलसंज्ञावाला होता है। इसी प्रकार आगे के मासवाले नक्षत्रों को संज्ञा का ज्ञान किया जा सकता है। इस संज्ञा का प्रयोजन उस महीने के फलादेश से बताया गया है। नक्षत्रों के दिशाद्वार का प्रतिपादन करते हुए समवायांग में बताया गया है कि
कत्तिआइया सत्तणक्खत्ता पुब्वदारिआ। महाहा सत्तणक्खत्ता दाहिणदारिया। अणुराहाइआ सत्तणक्खत्ता अवरदारिया। धणिटाइआ सत्तणक्खत्ता उत्तरदारिआ ।
-सं. अं. सं. ७ सू. ५ अर्थ-कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा ये सात नक्षत्र पूर्व द्वार; मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा दक्षिण ४८
भारतीय ज्योतिष
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