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________________ करता है। तात्पर्य यह है कि चन्द्रमा ऊँचा होने के कारण नक्षत्र-प्रदेशों से गुजरता है, इसलिए उसके गमन समय में नक्षत्र दिखलाई पड़ते हैं। सूर्य नक्षत्रों से बहुत नीचे है, इसलिए उसके गमनकाल में नक्षत्र दिखलाई नहीं पड़ते हैं। इसी प्रकार बुध, शुक्र आदि की कक्षाएं भी युक्तियुक्त प्रतीत होती हैं। उदयकाल के साहित्य में ग्रहकक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार के विचार मिलते हैं। अगले साहित्य में ये ही सिद्धान्त विकसित होकर आधुनिक रूप को प्राप्त हुए हैं। नक्षत्र-विचार ___ उदयकाल में भारतीयों को नक्षत्रों का पूर्ण ज्ञान था। इन्होंने अपने पर्यवेक्षण द्वारा मालूम कर लिया था कि सम्पातबिन्दु भरणी का चतुर्थ चरण है, अतएव कृत्तिका से नक्षत्रगणना की जाती थी। कुछ विद्वानों का मत है कि उदयकाल में कृत्तिका का प्रथम चरण ही सम्पातबिन्दु था, अतएव उस काल के ज्योतिर्विद् कृत्तिका से नक्षत्रगणना करते थे। ऋग्वेद में वर्तमान प्रणाली के अनुसार नक्षत्र-चर्चा मिलती है अमी य ऋक्षा निहितास उध्रा नक्रन्दहध कुहचिदवेयुः। अदब्धानि वरुणस्य व्रतानि विचाकसश्चन्द्रमा नक्कमेति ॥ इस मन्त्र में रात्रि में नक्षत्र-प्रकाश एवं दिन में नक्षत्रप्रकाशाभाव का निरूपण किया गया है। वाजनावती सूर्यस्य योषा चिन्ता मघा राय ईको वसूनां । -ऋ.सं. ७. ७.५ इस मन्त्र में चित्रा और मघा का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। यजुर्वेद के एक मन्त्र में २७ नक्षत्रों को गन्धर्व कहा गया है; जिससे ध्वनित होता है कि उस समय २७ नक्षत्रों का प्रचार था; पर यह जानना कठिन है कि नक्षत्रों की गणना किस प्रकार ली जाती थी । अथर्ववेद में कृत्तिकादि २८ नक्षत्रों का वर्णन करते हुए लिखा है चित्राणि साकं दिवि रोचनानि सरीसपाणि भुवने जवानि । अष्टाविंशं सुमतिमिच्छमानो अहानि गीर्भिः सपर्यामि नाकम् ॥ सुहवं मे कृत्तिका रोहिणी चास्तु भद्रं मृगशिरः शमार्दा । पुनर्वसू सूनृता चार पुण्यो मानुराश्लेषा भतनं मघा मे ॥ पुष्यं पूर्वाफाल्गुन्यो चात्र हस्तश्चित्रा शिवा स्वाति: सुखो मे । अनुराधो विशाखे सुहनानुराधा ज्येष्ठा सुनक्षत्रमरिष्टं मूलम् ॥ अन्नं पूर्वा रासन्तां मे आषाढा उर्ज ये द्युत्तर आ वहन्तु । अभिजिन्मे रासत पुण्यमेव श्रवणः श्रविष्ठा कुर्वतां सुपुष्टिम् ॥ आ मे महच्छतभिषग्वरीय आ मे द्वयः प्रोष्ठपदा सुशर्म । आ रेवती चाश्वयुजो मर्ग मे रयि मरण्य आ वहन्तु ॥ -अ. सं. १९. ७ १६ भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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