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कार्यसिद्धि-असिद्धि प्रश्न
- पृच्छक का मुख जिस दिशा में हो उस दिशा की अंक संख्या (पूर्व १, पश्चिम २, उत्तर ३, दक्षिण ४); प्रहर संख्या ( जिस प्रहर में प्रश्न किया गया है, उसकी संख्या-तीन-तीन घण्टे का एक प्रहर होता है। प्रातःकाल सूर्योदय से तीन घण्टे तक प्रथम प्रहर, आगे तीन-तीन घण्टे पर एक-एक प्रहर की गणना कर लेनी चाहिए। ); वार संख्या ( रविवार १, सोमवार २, मंगलवार ३, बुधवार ४, बृहस्पतिवार ५, शुक्रवार ६, शनिवार ७) और नक्षत्र संख्या ( अश्विनी १, भरणी २, कृत्तिका ३, रोहिणी ४ इत्यादि गणना ) को जोड़कर योगफल में आठ का भाग देना चाहिए। एक अथवा पाँच शेष रहे तो शीघ्र कार्यसिद्धि; छह अथवा चार शेष में तीन दिन में कार्यसिद्धि; तीन अथवा सात शेष में विलम्ब से कार्यसिद्धि एवं शून्य शेष में कार्य की सिद्धि ‘नहीं होती।
पृच्छक से एक से लेकर एक सौ आठ अंक के बीच की एक अंक संख्या पूछनी चाहिए। इस अंक संख्या में १२ का भाग देने पर १७१९ शेष बचे तो विलम्ब से कार्यसिद्धि; ८।४।५।१० शेष में कार्यनाश एवं २।६।०।११ शेष में कार्यसिद्धि होती है । गर्भस्थ सन्तान पुत्र है, या पुत्री का विचार
१-प्रश्नकुण्डली में लग्न में सूर्य, गुरु या मंगल हो अथवा ये ग्रह ३।५।७।९बैं स्थान में हों तो पुत्र और अन्य कोई ग्रह इन स्थानों में हो तो कन्या होती है।
२-प्रश्नलग्न विषम राशि या विषम नवमांश में हो और लग्न में सूर्य, गुरु तथा चन्द्रमा बलवान् होकर स्थित हों तो पुत्र का जन्म होता है। समराशि या समराशि के नवमांश में ये ग्रह स्थित हों तो कन्या का जन्म होता है। गुरु और सूर्य विषम राशि में हों तो पुत्र; चन्द्रमा, शुक्र और मंगल समराशि में हों तो कन्या का जन्म होता है।
३-शनि लग्न के सिवा अन्य विषम राशि में स्थित हो तो पुत्र एवं द्विस्वभाव लग्न पर बुध की दृष्टि हो तो यमल सन्तान उत्पन्न होती है।
४-लग्न में पुरुष राशि हो और बलवान् पुरुष ग्रह की उसपर दृष्टि हो तो पुत्र; समराशि हो और स्त्री ग्रह की दृष्टि हो तो कन्या का जन्म होता है।
५-पंचमेश और लग्नेश समराशि में हों तो कन्या; विषमराशि में हों तो पुत्र उत्पन्न होता है। लग्नेश, पंचमेश एक साथ बैठे हों अथवा एक-दूसरे को देखते हों अथवा परस्पर एक-दूसरे के स्थान में हों तो पुत्रयोग होता है ।
६-पुरुषग्रह-सूर्य, मंगल, गुरु बलवान् हों तो पुत्रजन्म और स्त्रीग्रह-चन्द्र, शुक्र बलवान् हों तो कन्या का जन्म होता है । प्रश्नकुण्डली में ३।५।९।११वें स्थान में सूर्य, मंगल और गुरु हों तो पुत्र का जन्म अथवा ५।९वें भाव में बलवान् गुरु बैठा हो तो पुत्र का जन्म होता है।
पंचम अध्याय
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