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________________ जिस मास में आठवें भाव में पापग्रहों से दृष्ट या उस महीने में शत्रुओं के द्वारा विशेष कष्ट प्राप्त होता है । नाना प्रकार के अन्य कष्ट भी सहन करने पड़ते हैं । जिस महीने की मासकुण्डली में प्रवासावस्था में चन्द्रमा हो उसमें प्रवासे, नष्टावस्था में हो तो द्रव्यनाश, मृतावस्था में हो तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट, जयावस्था में हो तो विजय, हास्यावस्था में हो तो विलास, रति अवस्था में हो तो पर्याप्त सुख, क्रीडितावस्था में हो तो सौख्य, प्रसुप्तावस्था में हो तो कलह, शारीरिक कष्ट, ज्वरावस्था में हो तो भय, कम्पितावस्था में सुस्थितावस्था में हो तो सुख प्राप्त होता । मास का फल अवगत करने के लिए मासलग्नेश, चन्द्रमा, मासलग्न और मासलग्ननवांश के बलाबल का विचार करना चाहिए। जिस महीने में मासलग्नेश केन्द्र, त्रिकोण में स्थित हो, और शुभग्रह की दृष्टि हो, उस महीने में सुख प्राप्त होता है । मानसिक शक्ति मिलती है । इसी प्रकार जिस महीने में चन्द्रमा उच्च का हो अथवा अपनी राशि में लग्न या दशम में स्थित हो, उस महीने में धनधान्य की प्राप्ति होती है । अष्ट सिद्धि के लिए इस प्रकार का चन्द्रमा अत्यन्त उपयोगी होता है । यदि दशमेश चर राशि में स्थित हो तो उस महीने में सरकारी सेवा करनेवालों का स्थानान्तरण होता है । दशमेश शुभग्रहों से दृष्ट या युत हो तो पदोन्नतिपूर्वक स्थान परिवर्तन होता है और अशुभ या नीच राशि स्थित ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो अपमानपूर्वक स्थान परिवर्तन होता है । युक्त होकर चन्द्रमा स्थित हो स्वास्थ्य भी बिगड़ता है और Jain Education International १. विहाय राशि चन्द्रस्य भागा द्विघ्नाः शरोधृताः । लब्धं गता अवस्थाः स्युर्भोंग्यायाः फलमादिशेत् ॥ - ताजिकनीलकण्ठी, बनारस १९३९ ई., अ. ८, श्लो. २९ चन्द्रमा की राशि को छोड़कर अंशादि को दो से गुणा कर पाँच का भाग देने पर लब्धगत अवस्था और वर्तमान भोगावस्था होती है । चन्द्रमा की ( १ ) अवासा ( २ ) नष्टा ( ३ ) मृता ( ४ ) जया ( ५ ) हास्या ( ६ ) रति ( ७ ) क्रीडिता ( ८ ) प्रसुप्ता ( ९ ) भुक्ति ( १० ) ज्वरा ( ११ ) कम्पिता ( १२ ) सुस्थिता ये बारह अवस्थाएँ मानी गयी हैं । इन अवस्थाओं के अनुसार दैनिक और मासिक फल जाना जा सकता है । चतुर्थ अध्याय भुक्ति अवस्था में हो तो हो तो ज्वर, कास; एवं For Private & Personal Use Only ४५५ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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