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यदि लग्नांशेश और लग्नेशांशेश दोनों परस्पर में शत्रुभाव से देखते हों और चन्द्रमा भी उन दोनों को शत्रुदृष्टि से देखता हो तो मनोदुख देते हुए रोग उत्पत्ति का योग बनता है। यदि पूर्वोक्त स्वामियों के बीच में कोई एक नीच राशि को प्राप्त हो अथवा अस्त हो तो महीने का पूर्वार्ध अंश कष्टकारक और उत्तरार्ध सौख्यप्रद होता है। यदि उक्त दोनों मासकुण्डली लग्नांशेश और मासकुण्डली लग्नेशांशेश नीच राशि में स्थित हों अथवा अस्तंगत हों अथवा एक नीच राशि में और दूसरा अस्तंगत हो तो उस महीने में मृत्यु योग कहना चाहिए। इस योग का फल तभी ठीक घटता है, जब जन्मकाल और वर्षकाल में अरिष्ट योग होता है और दशा मारकेश ग्रह की चलती है । अन्यथा केवल बीमारी ही समझनी चाहिए ।
मासलग्न में जिस भाव के नवांश का स्वामी अपने स्वामी के नवांश स्वामी द्वारा मित्रदृष्टि से देखा जाता हो अथवा युक्त हो और वहीं चन्द्रमा भी यदि भावनवांशस्वामी
और भावेशनवांशस्वामी को मित्रदृष्टि से देखता हो तो उस भाव से उत्पन्न सुख उसी महीने में प्राप्त होता है। नीच और अस्त आदि के होने पर-भावेश, भावनवांशेश नीच या अस्तंगत हों तो फल अशुभ प्राप्त होता है। दोनों के नीच या अस्त होने पर अधिक अशुभ और एक के नीच या अस्त होने पर अल्प अशुभ होता है ।
__वर्षलग्नेश, मासलग्नेश, वर्षेश और मासलग्ननवांशेश ये चारों जिस किसी भाव अथवा भावेश तथा नवांशेश के द्वारा मित्रदृष्टि से देखे जाते हों तो अथवा युक्त हों तो उस भाव का सौख्य प्राप्त होता है ।
बारहवें, छठे तथा आठवें भावों के नवांशस्वामी निर्बल हों तो शुभ फल प्राप्त होता है; शेष भावों के नवांशस्वामी बलिष्ठ होने पर शुभ फल देते हैं।
वर्षलग्नेश, मासेश, वर्षेश और मुन्थहेश ये चारों पापग्रहों से युक्त होकर यदि छठे या आठवें स्थान में हों और इन चारों को पापग्रह शत्रुदृष्टि से देखते हों तो उस महीने में नाना प्रकार के कष्ट होते हैं। परिवार के सदस्य भी बीमार पड़ते हैं तथा स्वयं को भी रोग होता है। व्यापार या नौकरी में उक्त योग के होने से क्षति होती है । पुलिस और राजनीतिक कर्मचारियों को अपने अफ़सरों द्वारा डाँट-डपट सहन करनी पड़ती है। लाल और सफ़ेद वस्तुओं के व्यापारियों को विशेष रूप से हानि होती है । मानसिक संकट अधिक रहता है। मुक़दमा आदि में विशेष रूप से परेशान होना पड़ता है।
____ वर्षलग्नेश, मासेश और वर्षेश यदि ये तीनों बलवान् होकर १।४७।१०वें भाव तथा त्रिकोण-५।९वें भाव में स्थित हों तो व्यक्ति को उस महीने में सभी प्रकार का सुख प्राप्त होता है। मासलग्नेश एकादश भाव या १२४७।१०वें भाव में स्थित हों तो भी जातक को सभी प्रकार की सुख-सामग्रियाँ प्राप्त होती हैं। मासेश और मासलग्नेश के दशम या नवम भाव में रहने से विशेष आर्थिक लाभ होता है। राजसम्मान, प्रतिष्ठा और मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
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मारतीय ज्योतिष
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