SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशसहम का फल – - वर्ष कुण्डली में यशसहम की राशि का स्वामी ८वें स्थान में पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो यश का नाश होता है । रोग सहम का फल जिस वर्ष कुण्डली में रोग सहम का स्वामी पापग्रह हो या पापग्रहों से युत हो तो यदि रोग सहम का स्वामी अष्टमेश से मुत्थशिल करे तो उस व्यक्ति को रोग होता है । प्राणी का मरण होता है । इस प्रकार समस्त सहमों का फल शुभग्रह से युत या दृष्ट आदि बलाबलों के अनुसार स्वबुद्धि से जान लेना चाहिए । ६।८।१२वें भाव में सभी सहमों के स्वामियों का रहना हानिकारक होता है । जिस सहम का स्वामी उक्त स्थानों में होता है, उस सहम-सम्बन्धी कार्य उस वर्षपत्रवाले व्यक्ति के बिगड़ जाते हैं । वर्ष का विशेष फल जन्मलग्नेश और वर्ष लग्नेश के सम्बन्ध से वर्ष का फल अवगत करना चाहिए । ये दोनों शुभग्रह हों, केन्द्र और त्रिकोण में स्थित हों तथा मित्र और शुभग्रहों से दृष्ट हों तो वर्ष अच्छा रहता है । दोनों के पापग्रह होने पर तथा ६।८।१२ वें भाव में स्थित होने पर वर्ष अनिष्टकर होता है । पदोन्नति लिए वर्ष लग्नेश या मासलग्नेश का उच्चराशि या मूल त्रिकोण में स्थित रहना आवश्यक है । मासफल अवगत करने के लिए मासकुण्डली निकालनी चाहिए । मासाधिपति का निर्णय और मासफल मासाधिपति का निर्णय करने के लिए अधिकारियों का इस क्रम से विचार करें - (१) मासलग्नपति (२) मुन्यहाधिपति ( प्रतिमास में २३ अंश मुन्था बढ़ता है, इस क्रम से मुन्हा राशि का स्वामी ) (३) जन्मलग्न का स्वामी (४) त्रिराशिपति ( ५ ) दिन में मासप्रवेश हो तो सूर्यराशिपति और रात्रि में मासप्रवेश हो तो चन्द्रराशिपति (६) वर्ष लग्न का स्वामी । इन छह अधिकारियों में जो बलवान् होकर मासकुण्डली की लग्न को देखता हो, वही मासाधिपति होता है । इस मास स्वामी के शुभाशुभ के अनुसार फल का विचार किया जाता है । मासफल मासलग्न का नवांशेश यदि मासलग्नेश तथा नवांश स्वामी के से स्थित हो, दृष्ट हो और उन दोनों स्वामियों को चन्द्रमा मित्रदृष्टि से उस मास में नाना प्रकार का सुख मिलता है, शरीर स्वस्थ रहता है, होती है, प्रभुता बढ़ती है तथा अन्य व्यक्ति उसके अनुयायी बनते हैं । चतुर्थ अध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only साथ मित्रभाव देखता हो तो आमदनी उत्तम LAL www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy