SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मास प्रवेश और दिनप्रवेश निकालने की अन्य विधि __ जन्मकालीन सूर्य जितनी राशि संख्यावाला हो, उसको ग्यारह स्थानों में रखना चाहिए और इसमें क्रमशः एक-एक राशि जोड़ने से मासप्रवेश का इष्टकाल आता है । तात्पर्य यह है कि जन्मकालीन स्पष्ट सूर्य और राशि आदि मिलने पर ही वर्षप्रवेश होता है । जितने समय में सूर्य जन्मकाल के सूर्य के बराबर अंश, कला तथा विकला पर होता है, वही वर्ष का इष्ट समय होता है। यदि एक राशि में अधिक सूर्य वहीं स्पष्ट के बराबर मिले तो वह मासप्रवेश का इष्ट समय होता है। एक-एक राशि बढ़ाते जाने से बारह महीनों का इष्ट होता है और कला-विकला में समानता रहती है । उक्त स्पष्ट सूर्य में एक-एक अंश बढ़ाते जाने से दिनप्रवेश का इष्ट और दिनप्रवेश दोनों निकल आते हैं। पंचांग से मासप्रवेश की घटी लाने की रीति “एक राशि जोड़ने से मासप्रवेश का सूर्य होता है। इसी के समीवर्ती पंचांग में स्थित अवधि प्रस्तार तथा मासप्रवेश के सूर्य का अन्तर करे। पुनः इस अन्तर की कला बना ले। उस अवधिस्थ सूर्य की गति से भाग देने पर वार, घटी और पल निकल आयेंगे। इनको अवधिस्थ वार, घटी, पल जोड़ दे या घटा दे। अवधिस्थ सूर्य से यदि मासप्रवेश का सूर्य अधिक हो तो उसे अवधिस्थ वार में जोड़ दे और यदि मासप्रवेश के सूर्य से अवधिस्थ सूर्य अधिक हो तो घटा दे। इसी वार-घटी-पलात्मक समय में मासप्रवेश होता है । दिनप्रवेश निकालने की विधि भी यही है । उदाहरण-स्पष्ट सूर्य ९।७।३०।६ है। इसकी राशि में एक जोड़ दिया तो दूसरे मास के प्रवेश का सूर्य १०१७।३०।६ हुआ। इसके समीपवर्ती फाल्गुन कृष्ण ९ नवमी शुक्रवार की अवधि में स्थित सूर्य १०।१०।१।३८ है। इन दोनों का अन्तर किया १०।१०। ११३८ १०। ७।३०। ६ ०॥ २॥३१॥३२ हुआ । अब २ अंश को ६० से गुणा कर कलाएँ बनायीं और इसमें ३१ कलाओं को जोड़ा । पश्चात् विकलात्मक मान बनाया २४६० = १२० + ३१ =१५१ कलाएं १५१x६० =९०६०, ९०६० + ३२ = ९०९२ यह भाज्य है । चतुर्थ अध्याय ४४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy