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स्पष्ट सूर्य पंचांग में देखकर उस पंचांगस्थ स्पष्ट सूर्य और मासप्रवेश के स्पष्ट सूर्य का अन्तर करके जो अंशादि शेष रहें उनकी विकला बना लेनी चाहिए। इन विकलाओं में सूर्य की गति की विकलाएँ बनाकर भाग देने से लब्ध दिन; शेष को ६० से गुणा कर इसी भाजक का भाग देने से लब्ध घटिकाएँ और शेष को ६० से गुणा कर उक्त भाजक का भाग देने पर लब्ध पल आयेंगे। यदि मासप्रवेश का सूर्य पंचांग के सूर्य में से घट गया हो तो आये हुए दिनादि को पंचांग के दिनादि में से घटा देना; अन्यथा जोड़ देना चाहिए।
उदाहरण-प्रस्तुत वर्षकुण्डली के प्रथम मास का स्पष्ट सूर्य ७।५।४१६४१ है, इसमें एक राशि जोड़ी
७५।४११४१
८।५।४१३४१ द्वितीय मासप्रवेश का स्पष्ट सूर्य सं. २००३ के विश्व पंचांग में ८।५।०५७ स्पष्ट सूर्य पौष कृष्ण १२ शुक्रवार का ४४।१८ मिश्रमान का दिया है।
८.५।४१६४१ मासप्रवेश के सूर्य में से ८.५ ०।५७ पंचांगस्थ सूर्य को घटाया
०१४०।४४ इसकी विकलाएँ बनायीं २४०० + ४४ = २४४४; सूर्य की गति ६१।२३ है, इसकी विकलाएँ =६११२३
६० ३६६०+२३ = ३६८३
२४४४ : ३६८३-० लब्धि; २४४४ शेष; २४४४४६० = १४६६४० : ३६८३ = ३९ लब्धि; ३००३ शे.; ३००३ x ६० = १८०१८० : ३६८३ = ४५।०।३९।४५ दिनादि आया। यहाँ मासप्रवेश के सूर्य में से ही पंचांग के सूर्य को घटाया है, अतएव पंचांग के दिनादि में जोड़ा
६.४४११८ ०।३९।४५
७।२४। ३ अर्थात् शनिवार को २४ घटी ३ पल इष्टकाल पर द्वितीय मासप्रवेश होगा। इस इष्टकाल के लग्न, ग्रहस्पष्ट, भावस्पष्ट आदि पूर्ववत् बना लेने चाहिए तथा मासप्रवेश की कुण्डली भी तैयार कर लेनी चाहिए। इस प्रकार द्वादश महीनों की मास-कुण्डलियाँ तैयार कर लेनी चाहिए।
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भारतीय ज्योतिष
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