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________________ अवधिस्थ सूर्य की गति ६० विगति ३१ है । इसका विकलात्मक मान%= ६०४६०=३६००+ ३१-३६३१ यह भाजक है । ९०९२ : ३६३१ -२, १८२९ शेष १८२९४ ६० = १०९७४० : ३६३१ = ३०, ८१० शेष ८१०x६० = ४८६००:३६३१ %१३ लब्धि । २।३०।१३ लब्धि अर्थात् २ दिन ३० घटी १३ पल हुआ। अब यह सोचना है कि मासप्रवेश के सूर्य से अवधिस्थ सूर्य अधिक है, अतः २।३०।१३ को ऋणचालक जानकर इन वारादि को अवधिस्थ वारादि ६।०१० में घटाया तो ३।२९।४७ वार, घटी, पल हुए। अतएव फाल्गुन कृष्ण पंचमी भौमवार २९ घटी ४७ पल पर द्वितीय मासप्रवेश होगा। इस प्रकार प्रत्येक महीने का मासप्रवेश तैयार किया जा सकता है। सारणी पर मासप्रवेश का ज्ञान जिस राशि के जितने अंश पर वर्षप्रवेश का इष्ट वार-घटी-पलात्मक मान हो उसमें सारणी पर से उसी राशि अंश के कोष्ठक में जो वार, घटी पल हैं, उनको जोड़ देने से आगे का मासप्रवेश का इष्टकाल होता है । उदाहरण-कन्या राशि के ५वें अंश पर घटी-पलात्मक ७।३।५ मान है । सारणी में कन्या राशि दे. ५३ अंश के समक्ष कोष्ठक में २।२०।२० फल है। इसे पहलेवाले इष्टकाल में जोड़ा ७। ३। ५ २।२०१२० ९।२३।२५ यही अगले महीने का इष्टकाल है । इष्टकाल पर से लग्न, तन्वादिभाव एवं ग्रहयोग आदि का आनयन कर लेना चाहिए। सुविधा की दृष्टि से मासप्रवेश-बोधक सारणी दी जा रही है। इसपर से मासप्रवेश का इष्टकाल निकाल लेना चाहिए। ४४६ मारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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