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________________ पंचाधिकारियों की लग्न पर समान दृष्टि हो और बल भी बराबर हो अथवा पाँचों निर्बली हों तो मुन्थेश ही वर्षेश होता है । यदि पांचों की ही दृष्टि लग्न पर न हो तो उनमें जो अधिक बली होता है वही वर्षेश होता है । कई आचार्यों का मत है कि पंचाधिकारियों की दृष्टि एवं बल समान हो तो समयाधिपति - दिन में वर्षप्रवेश हो तो सूर्यराशीश और रात में वर्षप्रवेश हो तो चन्द्रराशीश वर्षेश होता है । चन्द्रवर्षेश का निर्णय ताजिक शास्त्र के आचार्यों ने चन्द्रमा को वर्षेश होना नहीं माना है । उनका अभिमत है कि कोमल प्रकृति जलीय चन्द्र अनुशासन का कार्य नहीं कर सकता है | दुसरी बात यह भी है कि चन्द्रमा मन का स्वामी है, और शासन मन से नहीं होता है, उसके लिए शारीरिक बल की भी आवश्यकता होती है । इसीलिए इस शास्त्र के वेत्ताओं ने चन्द्रमा को वर्षेश स्वीकार नहीं किया है । यदि पूर्वोक्त नियमों के अनुसार चन्द्रमा वर्षेश आता हो तो वह जिस ग्रह के साथ इत्थशाल योग करता है, वही ग्रह वर्षेश होता है, यदि चन्द्र किसी ग्रह के साथ इत्थशाल नहीं करता हो तो वर्षकुण्डली का चन्द्र राशीश ही वर्षेश होता है। उदाहरणपूर्वोक्त उदाहरण वर्ष कुण्डली के पंचाधिकारियों में सबसे बली मंगल आया है, मंगल की लग्न पर दृष्टि भी है अतएव मंगल हो वर्षेश होगा । हर्षबल साधन ग्रहों के हर्षस्थान चार प्रकार के होते हैं । १ - वर्ष लग्न से सूर्य ९वें, चन्द्र ३रे, मंगल ६ठे, बुध लग्न में, गुरु ११वें, शुक्र ५ वें और शनि १२ वें स्थान में हों तो ये ग्रह हर्षित होते हैं । २ - स्वगृह और स्वोच्च में ग्रह हर्षित होते हैं । ३ –वर्ष लग्न से ११२|३|७|८|९ वें भावों में स्त्रीग्रह और ४/५ | ६ | १०|११| १२वें भावों में पुरुषग्रह हर्षित होते हैं । ४ – पुरुषग्रह — रवि, मंगल, गुरु दिन में और स्त्रीग्रह तथा नपुंसक ग्रह शुक्र, चन्द्र, बुध, शनि रात में वर्ष प्रवेश होने पर हर्षित होते हैं । जहाँ हर्षबल प्राप्त हो वहीं ५ विश्वात्मक बल होता है । उदाहरण - प्रस्तुत वर्ष कुण्डली में प्रथम प्रकार का हर्षबल किसी ग्रह का नहीं है । द्वितीय प्रकार का हर्षबल स्वगृही होने से शुक्र और मंगल का है । तृतीय प्रकार का हर्षल शुक्र, चन्द्र, बुध का है, और चतुर्थ प्रकार का रात में वर्षप्रवेश होने के कारण चन्द्र, बुध, शुक्र और शनि इन चारों ग्रहों का है । १. यहाँ स्त्रीग्रहों में शुक्र, बुध, शनि और चन्द्र इन चारों को ग्रहण किया है । चतुर्थ अध्याय ५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only ४३३६ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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