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________________ I हर्षबल च चं. । भो./ बु. | गु. | शु.. ग्रह । प्रथम द्वितीय ० | तुतीय ५ / चतुर्थ ५ | ऐक्य जिस ग्रह का हर्षबल ५ विश्वा हो वह अल्पबली, १० विश्वा हो वह मध्यबली, १५ विश्वा हो वह पूर्णबली और शून्य विश्वा हो वह निर्बल माना जाता है। हर्षित ग्रह अपनी दशा में अच्छा फल देता है । षोडश योगों का फलसहित लक्षण ताजिक शास्त्र में लग्न के स्वामी को लग्नेश और शेष भावों के स्वामियों को कार्येश कहा गया है । इन दोनों के योग से षोडश योग बनते हैं। १. इक्कवाल-केन्द्र और पणफर में सभी ग्रह हों तो इक्कवाल योग होता है, इस योग के होने से जातक की उन्नति होती है, उसे यश, धन और सन्तान की प्राप्ति होती है। २. इन्दुवार-आपोक्लिम में सभी ग्रह हो तो इन्दुवार योग होता है। इसके होने से सामान्य सुख की प्राप्ति होती है । ३. इत्थशाल-इस योग के इत्थशाल पूर्ण, इत्थशाल और भविष्यत् इत्थशाल ये तीन भेद हैं। (क) लग्नेश तथा कार्येश दोनों में जो ग्रह मन्दगति हों वह शीघ्रगति ग्रह से अधिक अंश पर हो तथा दोनों की परस्पर दृष्टि हो तो इत्थशाल योग होता है और दोनों में दीप्तांश तुल्य अन्तर हो तो मुन्थशिल योग होता है। (ख ) लग्नेश और कार्येश में मन्दगति ग्रह से शीघ्रगति ग्रह १ विकला से ३० विकला तक न्यून हो तो पूर्ण इत्थशाल योग होता है। (ग) मन्दगति ग्रह जिस राशि में हो उससे पिछली राशि में शीघ्रगति ग्रह उस मन्दगति ग्रह से दीप्तांश तुल्य अन्तर पर हो । जैसे चन्द्रमा ३।२८ और बुध ४।१० है। यहाँ पर चन्द्रमा शीघ्रगति ग्रह है, जो कि मन्दगति ग्रह बुध से एक राशि पीछे है। चन्द्रमा से मन्दगति ग्रह बुध चन्द्रमा के दीप्तांश तुल्य आगे है अतः यह भविष्यत् इत्थशाल योग हुआ। लग्नेश से जिन-जिन भावों के स्वामियों का इत्थशाल योग हो उन-उन भावसम्बन्धी लाभ होता है । लग्नेश, कार्येश परस्पर मित्र हों तो सुखपूर्वक अन्यथा १. चन्द्र, बुध, शुक्र, सूर्य, भौम, गुरु और शनि उत्तरोत्तर मन्दगति हैं । ४३४ भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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