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________________ पाँचवें स्थान में स्थित ग्रह को प्रत्यक्षस्नेहा ४५ कलावाली दृष्टि से देखता है । यह दृष्टि सम्पूर्ण कार्यों में सिद्धि देनेवाली, मेलापक संज्ञावाली बतायी गयी है । कोई ग्रह अपने स्थान से तीसरे और ग्यारहवें स्थान में स्थित ग्रह को गुप्तस्नेहा दृष्टि से देखता है तीसरे भाव की दृष्टि ४० कलावाली और ११वें भाव की दृष्टि १० कलावाली होती है । ग्रह दृष्टि कार्यसिद्धि करनेवाली और स्नेहवर्द्धिनी बतायी गयी है । चौथे और दशवें भाव में गुप्तवैरा एवं १५ कलावाली दृष्टि होती है । पहले और सातवें भाव में प्रत्यक्षवैरा एवं ६० कलावाली दृष्टि होती है । ये दोनों ही दृष्टियाँ क्षुत संज्ञक कार्य नाश करनेवाली बतायी गयी हैं । विशेष - दृश्य, द्रष्टा का अन्तर द्वादशांश ( बारह भाग ) से अधिक न हो तो दृष्टियों का फल ठीक घटता है, अन्यथा नहीं घटता । - बलवती दृष्टि वाम भागस्थ - छठे से लग्न से छठे भाग तक स्थित ग्रह के की वाम भागस्थ ग्रह के ऊपर निर्बल होती है । विशेष दृष्टि द्रष्टा ग्रह के दीप्तांश के मध्य में ही दृश्य ग्रह आगे व पीछे स्थित हो तो विशेष दृष्टि का फल होता है और दीप्तांशों से अधिक दृश्य ग्रह आगे-पीछे स्थित हो तो मध्यम दृष्टि का फल होता है । दीप्तांश बारहवें भाग तक रहनेवाले ग्रह की दक्षिण भागस्थ - ऊपर बलवती दृष्टि होती है । दक्षिण भागस्थ ग्रह सूर्य के १५ अंश, चन्द्र के १२ अंश, मंगल के ८ अंश, बुध के ७ अंश, गुरु के ९ अंश, शुक्र के ७ अंश और शनि के ९ अंश दीप्तांश होते हैं । उदाहरण - वर्ष कुण्डली में सूर्य, मंगल और बुध की राशि के ऊपर प्रत्यक्षस्नेही दृष्टि है । सूर्य वर्षकालीन स्पष्टग्रह में वृश्चिक राशि के पाँच अंश का आया है और शनि कर्क राशि के बारह अंश का आया है । अंशों के मान में सूर्य से शनि ७ अंश आगे है । सूर्य के दीप्तांश १५ हैं, अतः शनि सूर्य के दीप्तांश के भीतर हुआ अतएव सूर्य की दृष्टि का पूर्ण फल समझना चाहिए । मंगल का स्पष्टमान ७।१७ और शनि का ३।१२ है । दोनों में अंशों में ५ का अन्तर है । मंगल के दीप्तांश ८ हैं, अतएव दृश्यग्रह दीप्तांश के भीतर होने से पूर्ण फलवाली दृष्टि मानी जायेगी । इसी प्रकार अन्य ग्रहों की दृष्टि भी समझ लेनी चाहिए । वर्षेश का निर्णय वर्ष के पंच अधिकारियों में जो ग्रह बलवान् होकर लग्न को देखता हो वही वर्षेश होता है । यदि पंचाधिकारियों में कई ग्रहों का बल समान हो तो जो लग्न को देखता है, वही ग्रह वर्षेश होता है । ४३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only भारतीय ज्योतिष www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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