________________
रहस्यों एवं भेद को अवगत किया जा सकता है।
मानव के समक्ष जहाँ दर्शन नैराश्यवाद की धूमिल रेखा अंकित करता है, वहाँ ज्योतिष कर्तव्य के क्षेत्र में ला उपस्थित करता है। भविष्य को अवगत कर अपने कर्तव्यों द्वारा उसे अपने अनुकूल बनाने के लिए ज्योतिष प्रेरणा करता है । यही प्रेरणा प्राणियों के लिए दुखविघातक और पुरुषार्थसाधक होती है ।
पारमार्थिक दृष्टि से परिशीलन करने पर भारतीय ज्योतिष का रहस्य परम ब्रह्म को प्राप्त करना है । यद्यपि ज्योतिष तर्कशास्त्र है, इसका प्रत्येक सिद्धान्त सहेतुक बताया गया है; पर तो भी इसकी नींव पर विचार करने से ज्ञात होता है कि इसकी समस्त क्रियाएँ बिन्दु-शून्य के आधार पर चलती हैं, जो कि निर्गुण, निराकार ब्रह्म का प्रतीक है। बिन्दु दैर्घ्य और विस्तार से रहित अस्तित्ववाला माना गया है । यद्यपि परिभाषा की दृष्टि से स्थूल है, पर वास्तव में वह अत्यन्त सूक्ष्म, कल्पनातीत, निराकार वस्तु है । केवल व्यवहार चलाने के लिए हम उसे काग़ज़ या स्लेट पर अंकित कर लेते हैं। आगे चलकर यही बिन्दु गतिशील होता हुआ रेखा-रूप में परिवर्तित होता है अर्थात् जिस प्रकार ब्रह्म से ‘एकोऽहं बहु स्याम' कामना रूप उपाधि के कारण माया का आविर्भाव हुआ है, उसी प्रकार बिन्दु से एक गुण-दैर्ध्यवाली रेखा उत्पन्न हुई है। अभिप्राय यह है कि भारतीय ज्योतिष में बिन्दु ब्रह्म का प्रतीक और रेखा माया का प्रतीक है। इन दोनों के संयोग से ही क्षेत्रात्मक, बीजात्मक एवं अंकात्मक गणित का निर्माण हुआ है । भारतीय ज्योतिष का प्राण यही गणितशास्त्र है ।
. अनेक भारतीय दार्शनिकों ने रेखागणित और बीजगणित की क्रियाओं का दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण किया है। बीजगणित के समीकरण सिद्धान्त में अलीकमिश्रण की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि अध्यारोप और अपवाद विधि से ब्रह्म के स्वरूप को-अध्यारोप निष्प्रपंच ब्रह्म में जगत् का आरोप कर देना है और अपवाद विधि से आरोपित वस्तु का पृथक्-पृथक् निराकरण करना होता है, इसी से उसके स्वरूप को ज्ञात कर सकते हैं। तात्पर्य यह है कि प्रथमतः आत्मा के ऊपर शरीर का आरोप कर दिया जाता है, पश्चात् साधना द्वारा आत्मा को अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय इन पंचकोशों एवं स्थूल और सूक्ष्म कारण शरीरों से पृथक् कर उस आत्मा का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण-के + २क = ३५, यहाँ अज्ञात राशि का मूल्य निकालने के लिए दोनों में और कुछ जोड़ दिया जाये तो अज्ञात राशि का मूल्य ज्ञात हो जायेगा। अतएव यहाँ एक संख्या जोड़ दी तो-के + २क + १ = ३५ + १ = ( क +१) = (६):: क + १ = ६ .:. ( क + १)-१ = ६ -१.:. क
= ५; इस उदाहरण में पहले जो एक जोड़ा गया था, अन्त में उसी को निकाल दिया। इसी प्रकार जिस शरीर का आत्मा के ऊपर आरोप किया था, अपवाद द्वारा उसी शरीर को पृथक् कर दिया जाता है। इसी प्रकार दर्शन के प्रकाश में बीजगणित के सारे सिद्धान्त आध्या िदिखलाई पड़ेंगे।
मारतीय ज्योतिष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org