SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतएव ज्योतिष का प्रधान उपयोग यही है कि ग्रहों के स्वभाव और गुणों द्वारा अन्वय, व्यतिरेक रूप कार्यकारणजन्य अनुमान से अपने भावी सुख-दुख प्रभृति को पहले से अवगत कर अपने कार्यों में सजग रहना चाहिए; जिससे आगामी दुख को सुखरूप में परिणत किया जा सके। यदि ग्रहों का फल अनिवार्य रूप से भोगना ही पड़े, पुरुषार्थ को व्यर्थ मानें तो फिर इस जीव को कभी मुक्तिलाभ हो ही नहीं सकेगा। मेरी तो दृढ़ धारणा है कि जहाँ पुरुषार्थ प्रबल होता है, वहाँ अदृष्ट को टाला जा सकता है अथवा न्यून रूप में किया जा सकता है। कहीं-कहीं पुरुषार्थ अदृष्ट को पुष्ट करनेवाला भी होता है । लेकिन जहाँ अदृष्ट अत्यन्त प्रबल होता है और पुरुषार्थ न्यून रूप में किया जाता है, वहाँ अदृष्ट की अपेक्षा पुरुषार्थ हीन पड़ जाने के कारण अदृष्टजन्य फलाफल अवश्य भोगने पड़ते हैं । अतएव यह निश्चित है कि यदि शास्त्र केवल आगामी शुभाशुभों की सूचना देनेवाला है; क्योंकि ग्रहों की गति के कारण उनकी विष एवं अमृत रश्मियों की सूचना मिल जाती है । इस सूचना का यदि सदुपयोग किया जाये तो फिर ग्रहों के फलों का परिवर्तन करना कैसे असम्भव माना जा सकेगा? इसलिए यह ध्रुव सत्य है कि ज्योतिष सूचक शास्त्र है विधायक नहीं। लौकिक दृष्टि से इस शास्त्र का सबसे बड़ा यही रहस्य है। भारतीय ज्योतिष के रहस्य को यदि एक शब्द में व्यक्त किया जाये तो यही कहा जायेगा कि चिरन्तन और जीवन से सम्बद्ध सत्य का विश्लेषण करना ही इस शास्त्र का आभ्यन्तरिक मर्म है। संसार के समस्त शास्त्र जगत के एक-एक अंश का निरूपण करते हैं, पर ज्योतिष आन्तरिक एवं बाह्य जगत् से सम्बद्ध समस्त ज्ञेयों का प्रतिपादन करता है । इसका सत्य दर्शन के समान जीव और ईश्वर से ही सम्बद्ध नहीं है, किन्तु उससे आगे का भाग है। दार्शनिकों ने निरंश परमाणु को मानकर अपनी चर्चा का वहीं अन्त कर दिया, पर ज्योतिर्विदों ने इस निरंश को भी गणित द्वारा सांश सिद्ध कर अपनी सूक्ष्मता का परिचय दिया है। कमलाकर भट्ट ने दार्शनिकों द्वारा अभिमत निरंश परमाणु पद्धति का जोरदार खण्डन कर सत्य को कल्पना से परे की वस्तु बतलाया है। यद्यपि ज्योतिष का सत्य जीवन और जगत् से सम्बद्ध है, किन्तु अतीन्द्रिय है। इन्द्रियों द्वारा होनेवाला ज्ञान अपूर्ण होने के कारण कदाचित् ज्ञानान्तर से बाधित हो सकता है । कारण स्पष्ट है कि इन्द्रियज्ञान अव्यवहित ज्ञान नहीं है, इसी से इन्द्रियानुभूति में भेद का होना सम्भव है। ज्योतिष का ज्ञान आगम ज्ञान होते हुए भी अतीन्द्रिय ज्ञान के तुल्य सत्य के निकट पहुँचानेवाला है। इसके द्वारा मन की विविध प्रवृत्तियों का विश्लेषण जीवन की अनेक समस्याओं के समाधान को करता है। चित्तविश्लेषण शास्त्र फलित ज्योतिष का एक भेद है। फलितांग जहां अनेक जीवन के तत्वों की व्याख्या करता है, वहां मानसिक वृत्तियों का विश्लेषण भी । यद्यपि यह विश्लेषण साहित्य और मनोविज्ञान के विश्लेषण से भिन्न होता है, पर इसके द्वारा मानव जीवन के अनेक प्रथमाध्याय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy