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श्रद्धेय डॉ. भगवानदास जी ने रेखागणित की प्रथम प्रतिज्ञा का विश्लेषण करते हुए कहा है कि यहाँ दो वृत्तों का आपस में जो सम्बन्ध बताया गया है, वह असीम, अनादि, अनन्त पुरुष और प्रकृति के अभेद्य सम्बन्ध का द्योतक है। लेकिन यहाँ अभेद्य सम्बन्ध ऐसा है जिससे इनका पृथक् होना भी सिद्ध है। इनके बीच रहनेवाला त्रिभुज मन, इन्द्रिय और शरीर अथवा सत्त्व, रजस् और तमोगुण से विशिष्ट प्राणी का प्रतीक है। इसी कारण डॉक्टर सा. ने लिखा है कि "मैथेमैटिक्स-गणित का सच्चा रहस्य भी तभी खुलेगा जब वह गुप्त-लुप्त अंश के प्रकाश में जाँची और जानी जायेगी।"
ज्योतिषशास्त्र में प्रधान ग्रह सूर्य और चन्द्र माने गये हैं। सूर्य को पुरुष और चन्द्रमा को स्त्री अर्थात् पुरुष और प्रकृति के रूप में इन दोनों ग्रहों को माना है। पांच तत्त्व रूप भौम, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि बताये गये हैं। इन प्रकृति, पुरुष और तत्त्वों के सम्बन्ध से ही सारा ज्योतिश्चक्र भ्रमण करता है। अतएव संक्षेप में ही कहा जा सकता है कि पारमार्थिक दृष्टि से भारतीय ज्योतिषशास्त्र अध्यात्मशास्त्र है । ज्योतिष की उपयोगिता
मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं । व्यवहार के लिए अत्यन्त उपयोगी दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सवतिथि आदि का परिज्ञान इसी शास्त्र से होता है। यदि मानव-समाज को इसका ज्ञान न हो तो धार्मिक उत्सव, सामाजिक त्यौहार, महापुरुषों के जन्मदिन, अपनी प्राचीन-गौरव-गाथा का इतिहास प्रभृति किसी भी बात का ठीक-ठीक पता न लग सकेगा और न कोई उचित कृत्य ही यथासमय सम्पन्न किया जा सकेगा। शिक्षित या सभ्य समाज की तो बात ही क्या, भारतीय अपढ़ कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिचित है; वह भलीभांति जानता है किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होतो है, अतः कब बोना चाहिए जिससे फ़सल अच्छी हो । यदि कृषक ज्योतिषशास्त्र के उपयोगी तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश श्रम निष्फल जाता।
__ कुछ महानुभाव यह तर्क उपस्थित कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषिशास्त्र के मर्मज्ञ असमय में ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को सम्पन्न कर लेते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं। पर उन्हें यह भूलना न चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष का एक लघु शिष्य है। ज्योतिषशास्त्र के तत्त्वों से पूर्णतया परिचित हुए बिना विज्ञान भी असमय में वर्षा का आयोजन और निवारण नहीं कर सकता है। वास्तविक बात यह है कि चन्द्रमा जिस समय जलचर राशि और जलचर नक्षत्रों पर रहता है, उसी समय वर्षा होती है। वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्य को ज्ञात कर जब चन्द्रमा जलचर
१. देखें, दर्शन का प्रयोजन : पृ. ७१ ।
प्रथमाध्याय
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