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________________ निर्भय, स्वाध्यायशील, साधु- अनुग्राहक एवं दुष्टनिग्राहक होते हैं, अतएव क्षत्रिय; जिनका जन्म उदासीन अंग —— गुणत्रय की अल्पतावाली ग्रह - रश्मियों के प्रभाव से होता है वे उदासीन बुद्धि, व्यवसायकुशल, पुरुषार्थी, स्वाध्यायरत एवं सम्पत्तिशाली होते हैं, अतएव वैश्य एवं जिनका जन्म अधमांग- तमोगुणाधिक्य रश्मिवाले ग्रहों के प्रभाव से होता है वे विवेकशून्य, दुर्बुद्धि, व्यसनी, सेवावृत्ति एवं हीनाचरणवाले होते हैं अतएव शूद्र बताये गये हैं । ज्योतिष की यह वर्णव्यवस्था वंशपरम्परा से आगत वर्णव्यवस्था से भिन्न है, क्योंकि होन वर्ण में भी जन्मा व्यक्ति ग्रहों की रश्मियों के प्रभाव से उच्च वर्ण का हो सकता है । भारतीय ज्योतिर्विदों का अभिमत है कि मानव जिस नक्षत्र ग्रह वातावरण के तत्त्वप्रभाव विशेष में उत्पन्न एवं पोषित होता है, उसमें उसी तत्त्व की विशेषता रहती है । ग्रहों की स्थिति की विलक्षणता के कारण अन्य तत्वों का न्यूनाधिक प्रभाव होता है । देशकृत ग्रहों का संस्कार इस बात का द्योतक है कि स्थान-विशेष के वाता - वरण में उत्पन्न एवं पुष्ट होनेवाला प्राणी उस स्थान पर पड़नेवाली ग्रह- रश्मियों की अपनी निजी विशेषता के कारण अन्य स्थान पर उसी क्षण जन्मे व्यक्ति की अपेक्षा भिन्न स्वभाव, भिन्न आकृति एवं विलक्षण शरीरावयववाला होता है । ग्रह- रश्मियों का प्रभाव केवल मानव पर ही नहीं, बल्कि वन्य, स्थलज एवं उद्भिज्ज आदि पर भी अवश्य पड़ता है । ज्योतिषशास्त्र में मुहूर्त — समय-विधान की जो मर्म - प्रधान व्यवस्था है, उसका रहस्य इतना ही है कि गगनगामी ग्रह-नक्षत्रों की अमृत, विष एवं उभय गुणवाली रश्मियों का प्रभाव सदा एक-सा नहीं रहता । गति की विलक्षणता के कारण किसी समय में ऐसे नक्षत्र या ग्रहों का वातावरण रहता है, जो अपने गुण और तत्त्वों की विशेषता के कारण किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए ही उपयुक्त हो सकते हैं । अतएव विभिन्न कार्यों के लिए मुहूर्तशोधन अन्धश्रद्धा या विश्वास की चीज़ नहीं है, किन्तु विज्ञानसम्मत रहस्यपूर्ण है । हां, कुशल परीक्षक के अभाव में इन चीजों की परिणाम-विषमता दिखलाई पड़ सकती है । ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव को दूर करने के लिए जो रत्न धारण करने की परिपाटी ज्योतिषशास्त्र में प्रचलित है, निरर्थक नहीं । इसके पीछे भी विज्ञान का रहस्य छिपा है । प्रायः सभी लोग इस बात से परिचित हैं कि सौरमण्डलीय वातावरण का प्रभाव पाषाणों के रंग-रूप, आकार-प्रकार एवं पृथिवी, जल, अग्नि आदि तत्त्वों में से किसी तत्त्व की प्रधानता पर पड़ता है । समगुणवाली रश्मियों के ग्रहों से पुष्ट और संचालित व्यक्ति को वैसी ही रश्मियों के वातावरण में उत्पन्न रत्न धारण कराया जाये तो वह उचित परिणाम देता है । प्रतिकूल प्रभाव के मानव को विपरीत स्वभावोत्पन्न रत्न धारण करा दिया जाये तो वह उसके लिए विषम हो जायेगा । स्वभावानुरूप रश्मि प्रभाव परीक्षण के पश्चात् सात्त्विक साम्य हो जाने पर रत्न सहज में लाभप्रद हो सकता है । प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only २३ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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