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आलोच्य सभी विषयों का इस शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय बनना ही इस बात का साक्षी है कि यह जीवन का विश्लेषण करनेवाला शास्त्र है ।
भारतीय ज्योतिषशास्त्र के निर्माताओं के व्यावहारिक एवं पारमार्थिक ये दो लक्ष्य रहे हैं । प्रथम दृष्टि से इस शास्त्र का रहस्य गणना करना तथा दिक्, देश एवं काल के सम्बन्ध में मानव समाज को परिज्ञान कराना कहा जा सकता है। प्राकृतिक पदार्थों के अणु-अणु का परिशीलन एवं विश्लेषण करना भी इस शास्त्र का लक्ष्य है। सांसारिक समस्त व्यापार दिक्, देश और काल इन तीन के सम्बन्ध से ही परिचालित हैं, इन तीन के ज्ञान बिना व्यावहारिक जीवन की कोई भी क्रिया सम्यक् प्रकार सम्पादित नहीं की जा सकती है । अतएव सुचारु रूप से दैनन्दिन कार्यों का संचालन करना ज्योतिष का व्यावहारिक उद्देश्य है। इस शास्त्र में काल-समय को पुरुष-ब्रह्म माना है और ग्रहों की रश्मियों के स्थितिवश इस पुरुष के उत्तम, मध्यम, उदासीन एवं अधम ये चार अंग विभाग किये हैं । त्रिगुणात्मक प्रकृति के द्वारा निर्मित समस्त जगत् सत्त्व, रज और तमोमय है । जिन ग्रहों में सत्त्वगुण अधिक रहता है उनकी किरणें अमृतमय; जिनमें रजोगुण अधिक रहता है उनकी अभयगुण मिश्रित किरणे; जिनमें तमोगुण अधिक रहता है उनकी विषमय किरणे एवं जिनमें तीनों गुणों की अल्पता रहती है उनकी गुणहीन किरणें मानी गयी हैं। ग्रहों के शुभाशुभत्व का विभाजन भी इन किरणों के गुणों से ही हुआ है। आकाश में प्रतिक्षण अमृत रश्मि सौम्य ग्रह अपनी गति से जहाँ-जहां जाते हैं, उनकी किरणें भूमण्डल के उन-उन प्रदेशों पर पड़कर वहां के निवासियों के स्वास्थ्य, बुद्धि आदि पर अपना सौम्य प्रभाव डालती हैं । विषमय किरणोंवाले क्रूर-ग्रह अपनी गति से जहाँ गमन करते हैं, वहाँ वे अपने दुष्प्रभाव से वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य और बुद्धि पर अपना बुरा प्रभाव डालते हैं। मिश्रित रश्मि ग्रहों के प्रभाव मिश्रित एवं गुणहीन रश्मियों के ग्रहों का प्रभाव अकिंचित्कर होता है।
उत्पत्ति के समय जिन-जिन रश्मिवाले ग्रहों की प्रधानता होती है, जातक का स्वभाव वैसा ही बन जाता है। प्रसिद्धि भी है
एते ग्रहा बलिष्ठाः प्रसूतिकाले नृणां स्वमुर्तिसमम् ।
कुर्युर्देहं नियतं बहवश्च समागता मिश्रम् ।। अतएव स्पष्ट है कि संसार की प्रत्येक वस्तु आन्दोलित अवस्था में रहती है और हर वस्तु पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता रहता है ।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन चारों वर्गों की उत्पत्ति भी ग्रहों के सम्बन्ध से ही होती है। जिन व्यक्तियों का जन्म कालपुरुष के उत्तमांग-~-अमृतमय रश्मियों के प्रभाव से होता है वे पूर्णबुद्धि, सत्यवादी, अप्रमादो, स्वाध्यायशील, जितेन्द्रिय, मनस्वी एवं सच्चरित्र होते हैं, अतएव ब्राह्मण; जिनका जन्मकाल पुरुष के मध्यमांग-रजोगुणाधिक्य मिश्रित रश्मियों के प्रभाव से होता है वे मध्य बुद्धि, तेजस्वी, शूरवीर, प्रतापी, २२
भारतीय ज्योतिष
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