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________________ [१३] विख्यात चीनी विद्वान् लियाँग चिचाव के शब्दों में “वर्तमान सभ्य जातियों ने जब हाथ-पैर हिलाना भी प्रारम्भ नहीं किया था तभी हम दोनों भाइयों ने (चीन और भारत) मानव-सम्बन्धी समस्याओं को ज्योतिष-जैसे विज्ञान द्वारा सुलझाना आरम्भ कर दिया था।'' [१४] प्रो. वेलस महोदय ने प्लेफसर साहब की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की है, जिनका आशय है कि ज्योतिष-ज्ञान के बिना बीजगणित की रचना कठिन है। विद्वान् विल्सन कहते हैं कि “भारत ने ज्योतिष और गणित के तत्त्वों का आविष्कार अति प्राचीनकाल में किया था ।" [१५] डी. मार्गन ने स्वीकार किया है कि "भारतीयों का गणित और ज्योतिष यूनान के किसी भी गणित या ज्योतिष के सिद्धान्त की अपेक्षा महान् है । इनके तत्त्व प्राचीन और मौलिक हैं।" [१६] डॉ. थोबो बहुत सोच-विचार और समालोचना के अनन्तर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि "भारत ही रेखागणित के मूल सिद्धान्तों का आविष्कर्ता है। इसने नक्षत्रविद्या में भी पुरातन काल में ही प्रवीणता प्राप्त कर ली थी, यह रेखागणित के सिद्धान्तों का उपयोग इस विद्या को जानने के लिए करता था ।" . [१७ ] वर्जेस महोदय ने सूर्यसिद्धान्त के अँगरेजी अनुवाद के परिशिष्ट में अपना मत उद्धृत करते हुए बताया है कि भारत का ज्योतिष टालमी के सिद्धान्तों पर आश्रित नहीं है, किन्तु इसने ई. सन् के बहुत पहले ही इस विषय का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि भारतीय ज्योतिषशास्त्र का उद्भवस्थान भारत ही है । इसने किसी देश से सीखकर यहाँ प्रचार नहीं किया है। श्री लोकमान्य तिलक ने अपनी 'ओरायन' नामक पुस्तक में बताया है कि भारत का नक्षत्र-ज्ञान, जिसका कि वेदों में वर्णन आता है, ईसवी सन् से कम से कम पाँच हजार वर्ष पहले का है। भारतीय नक्षत्रविद्या में अत्यन्त प्रवीण थे। अतएव बैबीलोन या यूनान अथवा ग्रीस से भारत में यह विद्या नहीं आयी है। ई. सन् पूर्व दूसरी शताब्दी तक इस शास्त्र में आदान-प्रदान भी नहीं हुआ, किन्तु ई. सन् २-६ शती तक विदेशियों के अत्यधिक सम्पर्क के कारण पर्याप्त आदान-प्रदान हुआ है। पाश्चात्त्य सभ्यता के स्नेही कुछ समालोचक इसी काल के साहित्य को देखकर भारतीय ज्योतिष को यूनान या ग्रीस से आया बतलाते हैं। १. Letters on India : p. 109-111. २. Mill's India : Vol. II, p. 151. ३. Ancient and Mediaeval India Vol. I, P. 374. ४. पञ्चसिद्धान्तिका की भूमिका : p. LIII-LV. प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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