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________________ नियमों का आश्रय लेकर निश्चय करना चाहिए । लग्नेश और लग्नराशि के स्वरूप के अनुसार जातक के रूप-रंग का निश्चय करना चाहिए । मेष लग्न में लालमिश्रित सफ़ेद, वृष में पीलामिश्रित सफ़ेद, मिथुन में गहरा लालमिश्रित सफ़ेद, कर्क में नीला, सिंह में धूसर, कन्या में घनश्याम रंग, तुला में कृष्णवर्ण लाली लिये, वृश्चिक में बादामी, धनु में पीत वर्ण, मकर में चितकबरी, कुम्भ में आकाश सदृश नीला और मीन में गौरवर्ण होता है ।। सूर्य से रक्त-श्याम, चन्द्र से गौरवर्ण, मंगल से समवर्ण, बुध से दूर्वादल के समान श्यामल, गुरु से कांचन वर्ण, शुक्र से श्यामल, शनि से कृष्ण, राहु से कृष्ण और केतु से धूम्र वर्ण का जातक को समझना चाहिए। लग्न तथा लग्नेश पर पापग्रह की दृष्टि होने से मनुष्य कुरूप होता है, बुध-शुक्र एक साथ कहीं भी हों तो गौरवर्ण न होते हुए भी सुन्दर होता है। शुभग्रह युत या दृष्ट लग्न होने पर जातक सुन्दर होता है। रवि लग्न में हो तो आँखें सुन्दर नहीं होती, चन्द्रमा लग्न में हो तो गौरवर्ण होते हुए भी सुडौल नहीं होता। मंगल लग्न में हो तो शरीर सुन्दर होता है, पर चेहरे पर सुन्दरता में अन्तर डालनेवाला कोई निशान होता है। बुध लग्न में हो तो चमकदार साँवला रंग होता है तथा कम या अधिक चेचक के दाग़ होते हैं। बृहस्पति लग्न में हो तो गौर रंग, सुडौल शरीर होता है, किन्तु कम आयु में ही वृद्ध बना देता है, बाल जल्द सफ़ेद होते हैं, ४५ वर्ष की उम्र में ही दांत गिर जाते हैं। मेदवृद्धि से पेट बड़ा हो जाता है। शुक्र लग्न में हो तो शरीर सुन्दर और आकर्षक होता है। शनि लग्न में हो तो मनुष्य के रूप में कमी होती है और राहु-केतु के लग्न में रहने से चेहरे पर काले दाम होते हैं। शरीर के रूप का विचार करते समय ग्रहों की दृष्टि का अवश्य आश्रय लेना चाहिए। लग्न में कुरूपता करनेवाले क्रूर ग्रहों के रहने पर भी लग्नस्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने से जातक सुन्दर होता है। इसी प्रकार पापग्रहों की दृष्टि होने से जातक की सुन्दरता में कमी आती है। शरीर के अंगों का विचार अंगों के परिमाण का विचार करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में लग्नस्थान गत राशि को सिर, द्वितीय स्थान की राशि को मुख और गला, तृतीय स्थान की राशि को वक्षस्थल और फेफड़ा, चतुर्थ स्थान की राशि को हृदय और छाती, पंचम स्थान की राशि को कुक्षि और पीठ, षष्ठ स्थान की राशि को कमर और आँतें, सप्तम स्थान की राशि को नाभि और लिंग के बीच का स्थान, अष्टम स्थान की राशि को लिंग और गुदा, नवम स्थान की राशि को ऊरु और जंघा, दशम स्थान की राशि को ठेहुना, एकादश स्थान की राशि को पिण्डलियाँ और द्वादश स्थान की राशि को पैर समझना चाहिए। भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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