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मालूम हो जाता है कि उदयकाल में भारतीय ज्योतिष कितना उन्नतिशील था। अयन, मलमास, क्षयमास, नक्षत्रों की श्रेणियाँ, सौरमास, चान्द्रमास आदि का सूक्ष्म विवेचन ज्योतिष्करण्डक में सुन्दर ढंग से भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता और मौलिकता सिद्ध कर रहा है। भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता पर विदेशी विद्वानों के अभिमत
भारतीय ज्योतिष को प्राचीन और मौलिक केवल भारतीय विद्वान् ही सिद्ध नहीं करते हैं, बल्कि अनेक विदेशीय विद्वानों ने भी इसकी प्राचीनता स्वीकार की है। यहां कुछ विद्वानों के मत दिये जाते हैं
[१] अलबरूनी ने लिखा है कि "ज्योतिषशास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं। मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला । हिन्दुओं में अठारह अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं, जिनमें अन्तिम संख्या का नाम परार्द्ध बताया गया है।"
[२ ] प्रो. मैक्समूलर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "भारतवासी आकाश-मण्डल और नक्षत्र-मण्डल आदि के बारे में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं। मूल आविष्कर्ता वे ही इन वस्तुओं के हैं।"
[३] फ्रान्सीसी पर्यटक फाक्वीस वनियर भी भारतीय ज्योतिष-ज्ञान की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि “भारतीय अपनी गणना द्वारा चन्द्र और सूर्य ग्रहण की बिलकुल ठीक भविष्यद्वाणी करते हैं । इनका ज्योतिषज्ञान प्राचीन और मौलिक है।"
[४] फ्रान्सीसी यात्री टरवीनियर ने भी भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता और विशालता से प्रभावित होकर कहा है कि "भारतीय ज्योतिष-ज्ञान में प्राचीन काल से ही अतीव निपुण हैं।"
[५] एन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ ब्रिटैनिका में लिखा है कि “इसमें कोई सन्देह नहीं कि हमारे ( अँगरेज़ी) वर्तमान अंक-क्रम की उत्पत्ति भारत से है। सम्भवतः खगोल-सम्बन्धी उन सारणियों के साथ जिनको एक भारतीय राजदूत ईसवी सन् ७७३ में बग़दाद में लाया, इन अंकों का प्रवेश अरब में हुआ। फिर ईसवी सन् की ९वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में प्रसिद्ध अबुज़फ़र मोहम्मद अल खारिज्मी ने अरबी में उक्त क्रम का विवेचन किया और उसी समय से अरबों में उसका प्रचार बढ़ने लगा। युरॅप में शून्य सहित यह सम्पूर्ण अंक-क्रम ईसवी सन् की १२वीं शताब्दी में १. देखें-वेदांग ज्योतिष की भूमिका : भाग पृ. १-२६ तक डॉ. श्यामशास्त्री। २. अलबरूनीज़ इण्डिया : निल्द १, पृ. १७४-१७७ । ३. इण्डिया हाट केन इट टीच अस : पृ. ३६०-३६६ । ४. ट्रावेल्स इन दी मुगल इम्पायर : पृ. ३२९ । ५. टरवीनियरस ट्रेविल इन इण्डिया : पृ. ४३३ ।
प्रथमाध्याय
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