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________________ अर्थात् प्राचीन भारतीय विद्वान् खगोल का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बैबिलोन गये और वहाँ की भाषा सीखकर खगोल विद्या सीखी। भारत वापस आकर सूर्य को आधार मानकर आकाश के विभाग करने में कठिनाई का अनुभव किया, क्योंकि सूर्योदय होने पर अधिकांश नक्षत्र दूर-दर्शक यन्त्र से भी नहीं देखे जा सकते और इस कारण चन्द्रमा के आधार पर आकाश को २७ नक्षत्रों में बांटा; चन्द्रमा की विभिन्न कलाओं का अध्ययन करके उसके अनुसार पक्ष, मास और वर्ष बनाये, जिन्हें आगे चलकर सौर समय से सम्बद्ध कर दिया गया। यह सब हास्यास्पद मालूम होता है। अनुकरण जहाँ भी किया जाता है, वहाँ पूर्ण रूप से, और उस अनुकरण की पूरी छाप इतिहास पर लग जाती है । भारतीय खगोल के इतिहास में बैबिलोन के खगोल की छाप हमें मिलती ही नहीं है । बैबिलोन में सूर्य की गतियों को दृष्टि में रखकर नक्षत्रों का विभाजन किया गया है, पर भारत में चन्द्रमा को प्रधान मानकर आकाश का बँटवारा २८ नक्षत्रों में किया है। मैक्समूलर ने आगे बताया है “We must never forget that what is natural in one place is natural in other places also, and............no case has been made out in favour of a foreign origin of the elementary astronomical notions of the Hindus as found or presupposed in the Vedic hymns." -- Objections, p. 130 अर्थात्-भारतीयों की आकाश का रहस्य जानने की भावना विदेशीय प्रभाववश उद्भूत नहीं हुई, बल्कि स्वतन्त्र रूप से उत्पन्न हुई है। अतएव स्पष्ट है कि भारतीय ज्योतिष का जन्मस्थान भारत है, इसके ऊपर पूर्वमध्यकाल में विदेशीय सम्पर्क के कारण कुछ प्रभाव अवश्य पड़ा है; परन्तु मूलभूत भावना भारत की ही है। मूल ज्योतिष के तत्त्व इसी पुण्यभूमि में आज से हजारों वर्ष पहले आविष्कृत हुए हैं। ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि आज से कम से कम २८००० वर्ष पहले भारतीयों ने खगोल और ज्योतिषशास्त्र का मन्थन किया था। वे आकाश में चमकते हुए नक्षत्रपुंज, शशिपुंज, देवतापुंज, आकाशगंगा, नीहारिका आदि के नाम, रूप, रंग, आकृति से पूर्णतया परिचित थे। ___ कौन-सा नक्षत्र ज्योतिपूर्ण है, नभोमण्डल में ग्रहों के संचार से आकर्षण कैसे होता है ? तथा ग्रहों के प्रकाश का प्रभाव पृथ्वी स्थित प्राणियों पर कैसे पड़ता है, इत्यादि बातों का वेदों में वर्णन है। ___ जैनग्रन्थ सूर्यप्रज्ञप्ति, गर्गसंहिता, ज्योतिष्करण्डक इत्यादि में ज्योतिषशास्त्र की अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का वर्णन किया गया है। इन ग्रन्थों के अवलोकन से स्पष्ट १. Orion or Researches into Antiquity of Vedas, pp. 1.9; 17-38. भारतीय ज्योतिष १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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