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आकाश की ओर दृष्टि डालते ही सर्वप्रथम राशियों का ही दर्शन होता है, नक्षत्रों का नहीं । नक्षत्रों का दर्शन राशि दर्शन के पश्चात् सूक्ष्म निरीक्षण करने पर होता है । अतएव राशिज्ञान के अभाव में नक्षत्रों का प्रतिपादन सम्भव नहीं कहा जा सकता । ऋग्वेद संहिता में चक्र शब्द आया है, जो राशिचक्र का बोधक है । " द्वादशारं नहि तज्जराय' इस मन्त्र में द्वादशारं शब्द १२ राशियों का बोधक है । प्रकरणगत विशेषताओं के ऊपर ध्यान देने से इस मन्त्र में स्पष्टतया द्वादश राशियों का निर्देश मिलेगा । श्री डॉ. सम्पूर्णानन्द जी, सम्मान्य भू. पू. मुख्यमन्त्री, उत्तरप्रदेश 'द्वादशारं ' शब्द को द्वादश राशियों के बोधक होने में शंका करते हैं तथा द्वादश महीनों का द्योतक होने की सम्भावना करते हैं, परन्तु उनकी यह सम्भावना तर्कसंगत नहीं । कारण स्पष्ट है कि इस मन्त्र के आगेवाले भाग में ३६० दिन वर्ष - १२ राशियों के माने गये हैं । १२ महीनों के ३६० दिन नहीं हो सकते, क्योंकि चान्द्रमास २९ || दिन से अधिक नहीं होता, इस हिसाब से वर्ष में ३५४ दिन होते हैं, किन्तु मन्त्र में ३६० दिन बताये गये हैं, जो कि द्वादश राशि मान लेने पर ठीक आ जाते हैं । प्रत्येक राशि में ३० अंश तथा प्रत्येक अंश का माध्यम मान एक दिन इस प्रकार ३६० दिन द्वादश राश्यात्मक चक्र में हो जाते हैं 1 जैन ज्योतिष के विद्वान् गर्ग, ऋषिपुत्र और कालकाचार्य ने परम्परागत राशिचक्र का निरूपण किया है ।
कुछ पाश्चात्त्य विद्वान् भारतीय ज्योतिष को बैबिलोन से आया हुआ बतलाते हैं । उन्होंने लिखा है कि भारतीय बँबिलोन गये और वहाँ से ज्योतिष सीखकर आये; मैक्समूलर ने इस मत की समीक्षा करते हुए लिखा
"The twenty seven constellations, which were chosen in India as a kind of lunar zodiac, were supposed to have come from Fabylon. Now the Babylonian zodiac was solar, and in spite of repeated researches, no trace of lunar zodiac has been found,.............. But supposing even that a lunar zodiac had been discovered in Babylon, no one acquainted with Vedic literature and with the ancient Vedic Ceremonial would easily allow himself to be persuaded that the Hindus had borrowed that simple division of the sky from the Babylonians. It is well known that most of the Vedic sacrifices depend on the moon, far more than on the sun."
Vol. XIII, Lecture iv. 'objections', pp. 126-127.
१. ऋक् सं. : १, १६४, ११ ।
१२. क्या भारतीय ज्योतिष ग्रीस से आया है ? 'साप्ताहिक संसार' ५ जुलाई, १९४५ ।
प्रथमाध्याय
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