________________
अंश तक स्वक्षेत्र है। गुरु का धनराशि के १ अंश से १३ अंश तक मूलत्रिकोण और १४ से ३० अंश तक स्वगृह होता है। शुक्र का तुला के १ अंश से १० अंश तक मूलत्रिकोण और ११ से ३० अंश तक स्वक्षेत्र है। शनि का कुम्भ के १ अंश से २० अंश तक मूलत्रिकोण और २१ से ३० अंश तक स्वक्षेत्र है। राहु का वृष में उच्च, मेष में स्वगृह और कर्क में मूलत्रिकोण है । द्वादश भावों-स्थानों का परिचय
जन्मकुण्डली के द्वादश भावों के नाम पहले लिखे गये हैं। यहाँ द्वादश भावों की संज्ञाएँ और उनसे विचारणीय बातों का उल्लेख किया जाता है। केन्द्र ११४।७।१०; पणफर २।५।८।११; आपोक्लिम ३।६।९।१२; त्रिकोण ५।९; उपचय ३।६।१०।११; चतुरस्र ४।८; मारक २१७; नेत्रत्रिक संज्ञक ६।८।१२ स्थान हैं ।
प्रथम भाव के नाम-आत्मा, शरीर, लग्न, होरा, देह, वपु, कल्प, मूर्ति, अंग, तनु, उदय, आद्य, प्रथम, केन्द्र, कण्टक और चतुष्टय हैं।
विचारणीय बातें-रूप, चिह्न, जाति, आयु, सुख, दुख, विवेक, शील, मस्तिष्क, स्वभाव, आकृति आदि हैं। इसका कारक रवि है, इसमें मिथुन, कन्या, तुला और कुम्भ राशियाँ बलवान मानी जाती हैं। लग्नेश की स्थिति के बलाबलानुसार कार्यकुशलता, जातीय उन्नति-अवनति का ज्ञान किया जाता है ।
द्वितीय भाव के नाम-पणफर, द्रव्य, स्व, वित्त, कोश, अर्थ, कुटुम्ब और धन है।
विचारणीय बातें-कुल, मित्र, आँख, कान, नाक, स्वर, सौन्दर्य, गान, प्रेम, सुखभोग, सत्यभाषण, संचित पूँजी ( सोना, चाँदी, मणि, माणिक्य आदि ), क्रय एवं विक्रय आदि हैं।
तृतीय भाव के नाम-आपोक्लिम, उपचय, पराक्रम, सहज, भ्रातृ और दुश्चिक्य है।
विचारणीय बातें-नौकर-चाकर, सहोदर, पराक्रम, आभूषण, दासकर्म, साहस, आयुष्य, शोर्य, धैर्य, दमा, खाँसी, क्षय, श्वास, गायन, योगाभ्यास आदि हैं।
चतुर्थ भाव के नाम केन्द्र, कण्टक, सुख, पाताल, तुर्य, हिबुक, गृह, सुहृद्, वाहन, यान, अम्बु, बन्धु, नीर आदि हैं ।
विचारणीय बातें-मातृ-पितृ सुख, गृह, ग्राम, चतुष्पद, मित्र, शान्ति, अन्तःकरण की स्थिति, मकान, सम्पत्ति, बाग-बगीचा, पेट के रोग, यकृत, दया, औदार्य, परोपकार, कपट, छल एवं निधि हैं। इस स्थान में कर्क, मीन और मकर राशि का उत्तरार्ध बलवान होता है। चन्द्रमा और बुध इस स्थान के कारक हैं। यह स्थान माता का है। तृतीयाध्याय
२५५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org